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श्वेताम्बर तेरापंथ - मत समीक्षा ।
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माना है। तीसपर भी तुम्हारे (तेरापंथीके) साधु नये - स्वच्छ तथा रेशमीकपडे पहनते हुए देखने में आते हैं, और उनको अचेलक कहते हो, इसका क्या कारण ? कारण विशेषमें कपडेको रंग देनेकी आज्ञा हमारे माने हुए सूत्रोंमे मौजूद है । इससे हम लोग रंगा हुआ कपडा रखते हैं, उसमें न दोष न आज्ञाका भंग है । 'न धोना न रंगना' यह जो कहा है, वह सफाई या शौकके आशय से कहा है । विशेष लाभके लिये तो खास आज्ञा दी हुई है ।
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प्रसंगानुरोध यह भी कह देना समुचित समझा जाता कि- पक्षपातको छोड करके व्यवहारिक रीतिसे देखा जाय तो यता पूर्वक परिमित जलसे वस्त्रपक्षालनमें फायदा ही है । पूर्व ऋषि-मुनिराजोंका संघयण तथा पुण्य प्रकृति और ही प्रकारकी थी, जिसके कारण दुर्गंधी तथा यूकादि नहीं पड़ते थे । आजकल छेवठा संघयण होनेसे मलीन वस्त्रोंमें दुर्गंधी हो जाती हैं तथा यूकाएं (जू) बहुत पडती हैं । आजकल तुम्हारे ( तेरापंथओं के ) अनेकों साधु, कपडोंमेंसे जू निकालते हुए दृष्टिगोचर होते हैं । उन जूओंको पैरोमे बांध रखते हैं, जिससे विशेष दोषका कारण होता है । वे जूएं कई गृहस्थोंके घर में पडती हैं, बहुतसी रास्तेमें गिरति हैं, तथा उपाश्रयमें तो गिरती ही रहती है । जू तीन इन्द्रियवाला जीव है, तो ऐसे तीन इन्द्रिय जीवोंकी इतनी विराधना न करके, फासुजल उपलब्ध हो, उससे यता पूर्वक कपडे साफ किये जाय, तो कितना दोष या लाभ होता है ? इस बातका विचार करनेमें आवे, तो एकान्तवाद हट करके स्याद्वादकी सीधी सडक प्राप्त हो सकती है। इतनाही प्रसंगसे कह करके अब मैं मूल बातपर आता हूँ ।
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