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ताम्बर तेरापंथ-बत समीक्षा।
होमसे बचा हुआ, जो पर्युषित है, वह भी खाने लायक है ।
बहुत कालसे रहा हुआ, स्नेह रहित जो यव, गोधुमसे उत्पन्न हुआहो तथा दूधका विकार जो मावादि (खुआ) होता है, वह ब्राह्मणोंकों खाने लायक है।
___ उपयुक्त दोनों श्लोकोंमें भक्ष्य-पर्युषित खाने लायक दिखलाया। उसमें स्पष्ट लिखा हुआ है कि-जिसमें जलका भाग न हो, वह खाने लायक है । वही बात तत्त्ववेत्ता जैनाचार्य भी कहते हैं। तथापि तेरापंथी लोग मनमाने अर्थ करके भगवान्की वाणीको सदोष बनाते हैं।
परन्तु महानुभावो ! जमाना दूसरी तरहका है इस समयमें तुम्हारे मनःकल्पित अर्थ, विद्वानोके आगे चलने वाले नहीं हैं। 'पर्युषितानं त्यजेत् ' इत्यादि वाक्य जैन तथा जैनेतर शा. समें स्पष्ट दिख पडतेहैं । रात्रिका रहा हुआ जलवाला पदार्थ रोटी, चावल,दाल,खीचडी,शाक वगैरह पदार्थ अभक्ष्य समझना चाहिये। जिसमें जलका भाग रहा नहीं है, ऐसे पदार्थ, दिखलाए हुए कालानुसार भगवान्ने भक्ष्य कहे हैं । उसी तरह हम लोक निदनीय सजीव वासी चीजें लेते नहीं हैं। आप लोग भी वैसा ही करेंगे तो भगवानकी आज्ञाके आराधक हो कर आत्मश्रेय करनेके लिये भाग्यशाली होंगे।
प्रश्न-२० पेला छला जीनेस्वर देवारा सादारे सर्व सपेदवर्णरा कपडा आया है और आप पीला कपडा पेनते हो और रंगते हो सो कीस शास्त्रकी रुहसे । . उत्तर-पहिले तथा अन्तिम तीर्थकर महाराजका कल्प अचेलक है । जीर्ण-तुच्छ वनका परिधान होनेसे अनेक
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