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वेताम्बर तेरापंच-मत समीक्षा । ६३ लीलण-फूलण पांच प्रकारकी है । तद्वर्ण लीलण-फूलण तुम्हारेसे जानी नहीं जायगी। अत एव सिद्धि सडकको छोड करके उलटे मार्गपर न चलो । ज्ञातासूत्रके पृष्ठ ६०० में आहारका अधिकार है । उत्तराध्ययनसूत्रके २४९ वे पृष्ठमें आठवे अध्ययनकी बारहवीं गाथा भी आधिकार है । परन्तु वहाँ किसी स्थानमें बहुत दिनोंका आहार लेनेको नहीं कहा है। जहाँ 'पुराणा' कहा है । वहाँ उडदका भात कहा है । अत एव जल रहित चूर्ण लेनेमें हानी नहीं है। जिस परमात्माको भूत-भविष्य तथा वर्तमानकालका निर्मल ज्ञान था । ऐसे परमात्माने जिस समय सूक्ष्मदर्शकादि यन्त्रोके साधन नहीं थे, ऐसे समयमें अपने ज्ञानके द्वारा समस्त वनस्पति, जलमें, तथा कंदमूल वगैरहमें; जीवो. त्पत्ति दिखलाई है । यह बात आजकल सायन्स विद्यासेडाक्टरी नियमसे तथा आयुर्वेदादिसे सिद्ध होती है । देखिये, आजकलके जमानेमें सायन्सवेत्ता, डोक्टर लोग तथा वैद्य लोग भी पयुर्षित अन्न खानेका निषेध किया करते हैं । वैष्णव लोग भी स्नेहयुक्त पर्युषितान्नको त्याग करते हैं । देखिये मनुस्मृतिके पांचवे अध्याय, पृष्ठ १८३ में कहा है। 'यत् किञ्चित् स्नेहसंयुक्तं भक्ष्यं भोज्यमगर्दितम् । तत्पर्युषितमप्यायं हविःशेषं च यद् भवेत् ॥२४॥ चिरस्थितमपि त्वायमस्नेहोक्तं द्विजातिभिः । , यवगोधूमजं सर्व पयसश्चैव विक्रिया ॥ २५ ॥
भावार्थ:-जो लाडु वगैरह, थोडे स्नेहयुक्त, कठिन, कोमल तथा विगडा हुआ नहीं है, वह खाने लायक है। तपा
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