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श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा |
६१.
योने आप ठंडा आहार लेणेमे मनाई परूपते हो, सो कीसी साखके अनुसार भरजीयो वे तो बतलाइये
उत्तर - आचारंग सूत्रके आठवे अध्ययनमें भगवान् महा वीरदेवने बहुत दिनोंका ठंडा आहार लिया, वैसा आहार नहीं है । परन्तु प्रथम स्कंध नववे अध्ययनके चतुर्थ उद्देशेमें इस तरहका पाठ है:
अविसूईयं च मुक्खं वा वातिपिंडं पुराणकुम्मास अदुबक्कसं पुलागंवा लद्वे पिंडे अलद्वदविए ||
भावार्थ- - दही से भींजाया हुआ भक्त ( भोजन ) तथा सूखे वालचने जो कि भूजे हुए हों, तथा वासी याने ठंड़ा भक्त ( भोजन ) जो सुबह से तीसरे महर तकका हो, अथवा वासी याने पर्युषित पुराणा उडदका भक्त चिरंतन धान्यका भोजन अथवा बहुत दिनोका सत्थु ( साथवा ), गोरस तथा गेंहुकामांड उनमे से कोई भी प्राप्त हो, परन्तु भगवान् राग द्वेष रहित हो हुए ग्रहण करे ।
अब यहाँ तेरापंथी महानुभाव, अपनी पकडी हुई बातको सिद्ध करनेके लिये अनेक प्रकारकी कोशिश करते हैं। परन्तु उन लोगोंको वास्तविक मतलब नहीं प्राप्त होनेसे स्वयं अभक्ष्यी होकर, अन्यको भी अभक्ष्यी करनेके लिये अर्थके अनर्थ करते 'हैं । 'भात' शब्द जहाँ जहाँ आता है, वहाँ वहाँ वहाँ 'भोजन' अर्थ करने का है। देखिये आज कलभी पुराणाही रिवाज चला आता है जैसे कोई स्त्री क्षेत्रमें भोजन देने को जाय, और उससे अगर कोई पूछे कि कहाँ जाती हो? तो वह यह कहेगी कि में भात देनेको जाती
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