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ताम्बर तेरापंथ-मन साक्षा ।
आस्रवरूप होता है । तथा 'जो अनास्रव' वे अपरिस्रव और 'जो अपरिस्रव वे अनास्रव कहे हैं । अनास्रव व्रतादि अशुभ अध्यवसायके कारणसे होते हैं । अपरिस्रव पापके कारणभूत होते हैं । निर्जराके कारण नहीं होते। जो अपरिस्रव याने पापके कारण है, वे अनास्त्रव याने निर्जराभूत होते हैं बीरपरमात्माके शासनके लिये तथा संघके लिये अनेक शुभ हेतुसे होते हुए पाप भी निर्जराके कारण होते हैं। देखिये भाचारांगसूत्रके पृष्ठ २२४ में इस तरह पाठ हैं:
जे आसवा ते परिस्सवा, जे परिस्सवा ते पासवा, जे प्रणासवा ते परिस्सवाजे अपरिस्सवा ते अपासवा।"
इस पाठका अर्थ हम उपर ही दे आए हैं।
प्रश्न-१८ आचारंगरै चोथा अध्यनरे दुजा उदेशेमे धर्महेते माणभूत जीवसत्वं हणीयां दोसकेवैतीके वचन आरजना छै तो फेर आप धर्मरे कारण इंस्या करणेमें दोस केशे नहीं परूपते हो।
उत्तर-इस प्रश्नका उत्तर सतरहवे प्रश्नके उत्तरमें ही आजाता है । वह पाठ भी सतरहवे प्रश्नमें दे दिया है। धर्मके निमित्त होती हुई करणीमें निर्जराही हैं । यह बात कई प्रश्नोंके उत्तरमें दिखला दी है । अत एव यहाँ विशेष स्पष्टीकरण करनेकी आवश्यक्ता नहीं है।
प्रश्न १९-आचारंगरे आठमे अध्ययनमें श्रीमगवंत महावीर देव ठंडो आहार गणादीनोंरो नीपज़ीयो डोलीयो चाली
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