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वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा ।
आए अडिनए अहासुहं देवाणुपिया ! मा पडिबंध करेदि ।”
अर्थात्-हे भगवन् ! आपसे अनुज्ञात हुआ मैं बेलेके ( दो उपवासके ) पारणेके लिये वाणिज्यग्रामनगरमें गोचरी लेनेको जाऊं, ऐसा चाहता हूँ। तब भगवान्ने कहाः-' हे देवानुप्रिय ! विलंब मत करो। ____ इत्यादि कई जगह धर्मके निमित्त भगवान ने ऐसा कहा है । उसी तरह देवमंदिरादि धर्मकृत्योंका उपदेश देनेमें किसी प्रकारकी हानी नहीं है।
प्रश्न-१७ आचारंगरे चौथे अध्येन दुज उदेशेकेयोके धर्म हेते सर्व प्रांण भूत जिव सत्वं हणीयां दोस नहि कवै, तीकै वचन अनारजना छै तो फेर आप इण पाठरे खीलाप प्रतिमा पूजणेमें धर्म केसे परूपते हो, कीउके प्रतिमाकी ध्रन्य पूजा कर्णेमें प्रत्यक्ष जीवहिंसा होती है।
उत्तर--आचारांगके चौथे अध्ययनके दूसरे उद्देशेमें जो पाठ है, वहाँ हिंसा करनेमें दोष नहीं है ' ऐसे बोलनेवालेके वचन अनार्यके वचन हैं। तथा 'दया पालनमें दोष नहीं है। यह वचन आयका है। इस मतलबका जो पाठ, प्रश्न पूछनेवाले महानुभाव दिखलाते हैं। वह पाठ असल में ऐसा सूचित नहीं करता है कि- धर्मके निमित्त हिंसा करे तथा धर्मके निमित्त हिंसा करनेवाला दोषवाला है, उस पाठमें ऐसा भाव बिलकुल नहीं है। देखिये, आचारांगके २३० वे पृष्ठमें वे दोनों पाठ इस तरह है:
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