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श्वेताम्बर तेरापंथ-गत समीक्षा । ५७ प्रश्न-१६ आचारंगरे चोथा अध्येनरे पेला देशामे कयों के धर्म रहे ते सर्व प्राण भूत सत्व जीवको ही मत हणो, अतीनकालरातीथंकरांरा वचन हैं तो फेर देवल वगेरे कराणेमे इण ससात्रके खीलाप धर्मकेशे परूपते हो
उत्तर-भूत-भविष्य तथा वर्तमान तीर्थकर महाराजाओंने हिंसाका निषेध किया, सो बराबर है । परन्तु धर्मके निमित्त समस्त जीवकी-समस्त प्राणीकी हिंसा नहीं करनी, ऐसा वचन नहीं है । तीसपर भी आप लोग ऐसे मनःकल्पित प्रश्न उठाते हैं। यही तुम्हारी बुद्धिका रहस्य झलक रहा है । यदि तीर्थकरोंके वचन वैसे मिले, तो तीर्थकर महाराज गौतम स्वामिको, देवशर्मा ब्राह्मणको प्रतिबोध करने के लिये क्यों भेजते ? आनन्द श्रावकके पास अवधि ज्ञान संबंधी 'मिच्छामिदकडं देनेको क्यों भेजते ? ' गौतम ! मृगालोढियाको देखावो' ऐसा क्यों कहते ?' गौतम!मालयकच्छमें सिंहासनगार रोता है, उसको समझाकर बुला लाओ, ऐसा क्यों कहते ? । क्योंकि-उपयुक्त कार्यों में जीवविराधना होनेका संभव है परन्तु वह आज्ञा भगवान्ने धर्मके निमित्तकी है । इसके सिवाय गोचरीके लिये भी भगवान् आज्ञा देते हैं। देखिये, उपासक दशांगके पृष्ठ .७२ का पाठः. “इच्छामि गं भंते ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए छडक्खमणपारणगंसि वाणिअगामे नयरे उच्चनीअमज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खाअपरि
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