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५६. श्वेताम्बर तेसपंथ-मत समीक्षा
* ** * * * अण्णेहिं पुढविसत्थं समारंभावे, अण्णेवा पुढविसत्यं समारंभते समणुजाण तं से अहिआए तं से अबोहिए।" ___ इसका भावार्थ यह हैः-इस जींदगीके परिवंदन मान तथा पूजाके लिये जाति-मरण और मोचनके लिये तथा दुःखके प्रतिघातके लिये जो स्वयं हिंसा करे, अन्यके पास करावे, तथा करनेवालेको अच्छा जाने वह कार्य अहित तथा अबोधके लिये होता है। __ यह उसका अक्षरार्थ है इसमें तुम्हारे प्रश्नसे उलटाही प्रतिभास होता है । तुम लिखते होः-जीवरी हस्याकियां जनममरणरो मुकावों परूपे तीणेन अहेत अबो धरो कारण केयो । यह बाततो स्वप्नमें भी नहीं है । महानुभाव ! सूत्रके असल-वास्तविक अर्थ जानने चाहते हो, तो व्याकरणादिका अभ्यास करो। पश्चात सूत्रके अर्थ समझनेका दावा करो, पूर्वोक्त पाठमें अपने स्वार्थके लिये हिंसा करने बालेको, हिंसा अबोध तथा अहितके लिये कही है। परिवंदन याने कोई बांदे नहीं तब क्रोध करके अन्यको पीडा करे। वैसेही मान तथा पूजामें भी समझना । इस तरह जाति-जन्म उत्तम मिले, वैसे आशयसे कुदेवोंको वंदणा करें, जलदी मृत्यु न हो, ऐसी आशासे अभक्ष्य-मांसादि खानेकी प्रवृत्ति करे । तथा करने वालेकी अनुमोदना करे, उसको अहितके लिये तथा अबोधके लिये कहा है । हम लोग जो उपदेश देते हैं, वह हिंसाके लिये नहीं परन्तु धर्मदेवकी भक्तिके लिये।
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