________________
वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा । ५३ 分仍处的分分合分仓分分分分分处分处长
अनेक राजे-महाराजे-शेठ-शाहुकार, आचार्य उपाध्यायादिको वंदणा करनेके निमित्त गये हैं। ऐसा बहुत सूत्रोमें देखनेमें आता हैं । अब तुमारे आशयसें तो गणधर महाराजा पापका उपदेश देने वाले हुए । इसके सिवाय आचारांगसूत्रमें कहा है:-साधी नदी में गिर गई हो तो साधु खुद नदी में गिर करके उसको निकाले, तो उसमें बहुत लाभ कहा है । कई साधुओंने उस तरह निकाली हैं, निकालते हैं तथा निकालेंगे । एसा करनेमें मुनिओंने असंख्य अप्काय हगे हैं, हणते हैं तथा हणेंगे ऐया उपदेश तीर्थंकर-गणधरोंने किया हैं, तो तुम्हारे हिसाबसे 'धम्मो मंगलमुकिलु' का तथा सूयगडांगसूत्रका पाठ कहाँ रहा? कदाचित यह कहेगा कि-साध्वीके निकालनेका लाभ, हिंसासे अधिक है, तो बस उसी तरह समझलो कि-जिन पूजादिक दर्शन शुद्धिकी करणीमें हिंसासे लाभ अधिक है। -गोचरी गया हुआ साधु, महामेघकी वृष्टि होती हो-वृष्टि शान्त न होती हो तो आती हुई वर्षा में भी अपने स्थानपर आजाय । एसा उपदेश आचारांग, निशिथ तथा कल्पसूत्रमें दिया है। - उस पाठके आधारसे कई मुनि आए हैं आते हैं ओर आयेंगे। अब उसमें अप काय बेइंद्रिय तेरिन्द्रिय जीवोंकी विराधना होती हैं तो उस-पाप तुम्हारे हिसाबसे उन उपदेश देने वालेके सिर होना चाहिये अच्छा और देखिये। तीर्थकर महाराज दो अगुंलीऑमे चपटी बजानेमें असंख्य जीवोकी विराधना कही है तो सूर्याभदेवने बत्तीस प्रकारके नाटक किये, वही सूर्याभदेव समकितवंत है इत्यादि बहुत वर्णन किया है, उसके आधारसे वर्तमान भी लोग, भगवान के सामने नाटक करते हैं।
भगवान ने सूर्याभदेवको निषेध नहीं किया । तो तुम्हारे हिसाShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com