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५२ पताम्बर तेरापंथ-भत समीक्षा । 们个性一小女分分分分分分分分分分
. ... प्रश्न-१३ दशवीकालकरा पेला अधेनरी पेली गाथामे 'अहिंसा संजमो तचों कयो ओर सुगडायंगजीरे पेले अध्येनमे चोथे उदेशे गाथ १० में ये बात कही जीन करणीमें कींचीत्तमात्र हीश्या नहीं ताकी करणी ज्ञानरो सारकेयो ओर आप देवल प्रतीमाकी ध्रव पूजा करणेथे वो संग कडानेमैं जीव इंश्या करणेमे दोस नहीं परुपते हो सो प्रतक्षे हंस्या होती हैं और श्री जिनेस्वरदेवने उपर लीखी यै सासत्रांमैं इंश्या कर्ण साफ मनाई की हैं।
उत्तर-दशवकालिककी पहली गाथा तथा सूयगडांगसूत्रके पृष्ठ ९५ में पहेले अध्ययनके चतुर्थ उद्देशेकी १० वीं गाथा तथा ग्यारहने अध्ययनमें (पृष्ठ ४२६ में) दशी गाथामें 'किचित्मात्र हिंसा न करनी' यह ज्ञानीका सार कहा है (मानकासार कहना भूल है), यह बात हमको सर्वथा मान्य है। इस बात पर सर्वथा अमल भी होता है। क्यों कि तीर्थकरकी आझामें धर्म है। जहाँ जहाँ तीर्थकरकी आज्ञा है, वहाँ वहाँ धर्म ही हैं । तीर्थकर महाराजने अनुकंपा लाकरके गोशाले जैसे शिष्याभासको बचाया। मेघकुमारने ससलाके जीवको बचाया (देखो ज्ञातासूत्र), परन्तु अफसोसकी बात है कि-आप लोग पूर्व कर्मके. उदयसे सत्य बातको भूल करके, असत्यमें फँस गयें हों । हिंसा-अहिंसाका स्वरूप भी अभी तक नहीं समझ सके हो । उववाई सूत्रमें कोणिकराज बडे आडंबरसे चतुरंगी सेनाके साथ प्रभुको बंदणा करनेके लिये गये, उसकी शाख, भगवती सूत्रके तेरहवे शतकके छठे उद्देशेमें उदायनके पाठमें “जहा कोणिओ. उववाए जहा पज्जुवासं" ऐसा कह करके गणधरोंने दी है। उस पुरावेको देख करके
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