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श्वेताम्बर तेरापंथ-पत समीक्षा । ५१ 们分处分处分处分分分分分分分分
देखो, इस पाठमें जब ज़िन प्रतिमाकी उपमाही दी, तब जिन प्रतिमाकी पूजा स्वतः सिद्ध हुई।
प्रश्न-११ उत्राधैनरा २८ मा अधनेमै ३६ मी गाथामे कर्म खपाणवरी करणी २ केही, एक तप दुसरे संगमः सो प्रतिमा पूजने वो मंदिर कराने वो सीगकडानेमें कानसी करणी
उत्तर-उत्तराध्ययनके २८ वें अध्ययनकी ३६ वीं गाधामेंसे कर्म खपानेकी करणी तप तथा संयम दोही कहते
वह ठीक नहीं है । क्यों कि-उसके ऊपरकी याने ३५ वीं गाथामें कहा है कि:__नाणेण जाण भावे दसणेण य सरहे । चरित्तेण निगिण्हा तवेण परिसुज्झ३' ॥ ३५॥
दिखलाये । और आपलोग ३६ वीं गाथासे कर्म खपानेकी करणी दो कहते हैं । यह सरासर सत्य विरुद्ध है। उसी गाथासे चार करणी निकलती है । देखिये, उस गाथामें 'खवित्ता पुत्र कम्माइं संजमेण तवेण य' ऐसा पद है । इसमें 'य' याने 'च' शब्द रक्खा हुआ है। 'च' - शब्दसे ज्ञान-दर्शनको ग्रहण कर लेना चाहिये । अगर वैसे न किया जाय, तो 'मानदर्शन-चारित्रकी त्रिपुटीकी विद्यमानतामें मोक्ष होता है। यह बात. अन्यथा हो जायगी । 'दर्शन' शब्दके आनेसे भगवान्की आज्ञाकी सद्दहणा आजाती है । और जहाँ भगवानकी आज्ञा है, वहाँ प्रतिमाको पूजना, मंदिर कराना तथा संघ निकालना वगैरह करणी आही जाती है ।
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