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वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा ।
प्रतिमापूजनी, मंदिर कराना तथा संघ निकालना ये दर्शनधर्ममें कहे जाते हैं । जरा आँखे खोल करके तीसरे ठाणेमें पृष्ठ ११७ घाँ देखो, उसमें लिखा है कि-जिन प्रतिमाकी तरह साधुकी भक्ति करता हुआ जीव शुभ दीर्घायुष्य कर्मको उपा. र्जन करता है ।' वह पाठ इस तरह है:___ "तिहि ठाणेहिं जीवा सुहदीहाउअत्ताए कम्म पंगरेति । तं जहा णो पाणे अइवाश्त्ता हवइ, जो मुसं वइना हव तहारूवं समणं वा वंदित्ता नमंसित्ता सकारत्ता सम्प्राणेत्ता कल्लाणं मगलं देव. यं चेइयं पज्जुवासेत्ता मणुन्नेणं पश्किारएणं अस.
पाणखाश्मसाश्मेणं पडिलाभेत्ता हवा इच्चेएहिं तिहिं ठाणेहिं जीवा सुहदीहाउअत्ताए कम्म पगरेति ।"
अर्थात्-तीन स्थानों करके जीव शुभ दीर्घ आयुष्य कर्म उपार्जन करता है। वे तीन स्थान ये हैं:-माणोंको नहीं मार करके अर्थात् जीवदया करके भूम नहीं बोल करके अर्थात सत्य बोल करके और सथारूप दयालु श्रमणको वन्दणा करके नमस्कार करके-सत्कार दे करके-सम्मान दे करके तथा कल्याण-मंगलके निमित्त जिनमतिमाकी तरह उस श्रमणकी पर्युपासना करके तथा उस श्रमणको मनोज्ञ-प्रीतिकारक अशनपान खादिम-स्वादिम आहार देकरके-प्रतिलाभ देकरके जीव शुभ दीर्घायु उपार्जन करता है।
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