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श्वेताम्बर सेराफ्य-मल समीक्षा । ४९ +- - - --
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* शब्द मिलता है, वहाँ तो 'प्रतिमा' अर्थ करके जिनप्रतिमाका निषेध करनेको तय्यार होते हो, और जहाँ 'अरिहंतचेझ्याणि'' शब्द आता है, वहाँ तो दूसराही अर्थ करके मन-मोदक उडानेकी कोशिश करते हो । यह भी तुम्हारी बुद्धिका एक अपूर्व नमूना है।
प्रश्न-११ ठांणायंगजीरे दुजे ठाणे धर्म दोय कया, सूत्रधर्म ओर चारीत्रधर्म, सो प्रतिमा पूजणेमे वो मंदीर करानेमे वो संग कडाणेमे कोनसा धर्म है। ___ उत्तर-ठाणांगके दूसरे ठाणेके पृष्ठ ४९ में धर्म दो मकारका. कहाः-श्रुतधर्म तथा चारित्र धर्म, ( ' सूत्रधर्म ' यह तो प्रश्नही झूठा है) इन दो प्रकारके धर्म कहनेसे दूसरे धर्मोंका निषेध नहीं होता है । जैसे उसी ठाणांगके १०२-१०३ पृष्टमें दो प्रकारके बोधी दिखलाए हैं। ज्ञानबोधी तथा सणबोधी। तथा दो प्रकारके बुध दिखलाए हैं। ज्ञानबुध-दसणबुध । तो इससे अन्यबोधी तथा अन्य बुधोंका निषेध नहीं होता है। दूसरे ठाणेमें दो दो वस्तुएं गिनाई हुई हैं । अतएव उसमें भी दोही वस्तुएं लिखी हैं। इसके सिवाय देखीये, तीसरे ठाणेमें अरिहंतके जन्म समय, दीक्षाके समय तथा केवलज्ञानके समय मनुष्य लोकमें इन्द्र आते हैं, ऐसा अधिकार है, तो इससे क्या निर्वाणके समय तथा च्यवनके समय इन्द्र नहीं आते हैं, ऐसा सिद्धि होता है ? कदापि नहीं । पांचो कल्याणकके समय इन्द्र आते है । इस तरह दो या तीन वस्तुएं गिनानेमे अन्य वस्तुओंका अभाव या निषेध समझ लेना, यह बड़ी भूल है।
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