________________
४८ - श्वेताम्बर तेरापयं-मत समीक्षा। -*-* - - *-*- *-- *
___ प्रश्न--१० प्रश्नव्याकर्णरा पांचमा आश्रवदुारमै पीनहारा नांव चालीया जीणमे प्रतमारो नांव भी सामल चल्यायो, ठांणायंगजी तीजे ठाणे प्रियो अनर्थरो मूलकयो तो फेर श्रीग्रासे तीर्णा कस सास्त्रकी रूसे परूपते हो, प्रतिमा प्रतक्ष प्रीग्रामे चाली हैं।
उत्तर-प्रश्न व्याकरणके पांचवे आश्रवद्वारमें परिग्रहके नाम आए । उसमें प्रतिमा का नाम नहीं है। वहाँ 'चेयियाणि' तथा ' देवकुल ' ऐसे दो शब्द आये हैं। 'चेयिआणि ' शब्दका अर्थ · चैत्यवृक्षान् ' ऐसा करनेको है। क्योंकि-शब्दके .अनेक अर्थ होते हैं । अधिकार देखना चाहिये । खैर, तिसपर भी यदि आपलोग 'चोययाणि' शब्दका 'अर्थ 'प्रतिमा' करते हैं, और · देवकुलका अर्थ ' . 'देवमंदिर' करते हैं, तोभी इससे जिनप्रतिमा' तथा ' जिनमंदिर' ऐसा अर्थ नहीं निकलेगा। - अच्छा, अब ' परिग्रह' किस खेतकी चीडीया है ? यह भी प्रश्न पूछने वालोंको मालूम नहीं है । दशवकालिक सूत्रके छठे अध्ययनकी २१ वी गाथामें कहा है:-" मुच्छा परिगहो वुत्तो इअ वुत्तं महेसिणा" मूच्छाहीको परिग्रह कहा है । ऐसा परमात्मा महावीर देव कहते हैं। यदि आप लोग 'प्रतिमा' को परिग्रहमें गिनते हो, तो दिखलाओ, उसके ऊपर किस प्रकारकी मूर्छा होती है ? । और यदि वस्तु ग्रहण करनेहिमें परिग्रहका दोष लगाते हो तो, तुम्हारे साधु परिग्रहधारी गिने जायेंगे, क्योंकि वस्त्र-पात्र-उपकरण वगैरह रखते हैं। हमें बडा आश्चर्य होता है कि-जहाँ केवल 'बस'
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com