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श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा। ४७ ----KAKKKAKKARKAKK मल्लीनाथभगवान् मंदबुद्धिये होंगे।
२ ज्ञाताजीमें सुबुद्धिमंत्रिने, राजाको प्रतिबोध देनेके लिये खाईका दुर्गंधी, जीवाका पिंडवाला जल, घडेमें वारंवार परावर्त किया। मुगंधी द्रव्य मिलाया, उसमें जीवोंका नाश हुआ। तो उसकोभी मंदबुद्धिया कहना चाहिये।
३ कोणिकराजा वगैरह बड़े आडंबरसे प्रभुको बंदणा करनेके लिये गये । बीचमें असंख्याता जीवाकी हिंसा हुई, तो उनको भी मंदबुद्धिया कहना चाहिये।
४ नदीमें पड़ी हुई साध्वीको साधु निकाले, उसमें अप्कायके जीवोंकी हिंसा होती है । स्त्री स्पर्शका दोष लगता है, तो तुम्हारे हिसाबसे वह साधुभी मंदबुद्धिया हो जायगा।
इसादि बहुतसे ऐसे धर्मके कार्य हैं, जिनमें हिंसा दि. खाई देती है, परन्तु वह हिंसा गिनी नहीं जाती । और यहाँ पर जो ' देवमंदिर' तथा 'प्रतिमा' कहे हैं, वे 'जिनमंदिर तथा 'जिन प्रतिमा' नहीं हैं, ऐसा निश्चय सिद्ध होता है। क्योंकि-उसी सूत्रके ३३९ वे पृष्ठमें दयाके नाम दिखलाये हैं। उनमें ५७ वाँ नाम 'पूजा' दिखलाया है। ( किसी भी जगह हिंसाकी करणीमें ' पूजा का नाम नहीं आया) तथा उसी सूत्रके ४१५ वे पृष्ठमें चैत्य-प्रतिमाकी वेयावच्च ( भक्ति) करता हुआ साधु निर्जरा करे, ऐसा अधिकार है। इससे भी सिद्ध होता है कि-पूर्वका पाठ अनार्यका है। अनार्यका पाठ ले करके तीर्थकर महाराजकी पवित्र पूजाका निषेध करनेको तय्यार होते हो, इससे तुम्हारे पर भावदया उत्पन्न होती है। कुछ समझविचार करके लिखो-बोलो जिससे भव भ्रमणता न हो।
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