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श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा ।
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हुए हों तो सात उपयोग होते है । छद्मस्थ मुनिको छठ्ठे गुणस्थानक से दशवे गुणस्थानक तक आठों आत्मा होते हैं, ग्यार हवे तथा बारहवे गुणस्थानकवालेको कपाय आत्मा नहीं होनेसे सात आत्मा माने जाते हैं । अब रही लेश्या । छठे गुणस्थानकवाले छद्मस्थ मुनिको तेजो, पद्म तथा शुक्ल ये तीन भाव लेश्या होती है । द्रव्यसे छ लेश्या होती है । यद्यपि चतुर्थकर्मग्रन्थकी ५३ वी गाथामें छे गुणस्थानक में छ लेश्या लीखी है। छठ्ठागुणस्थानकवालाके, दीक्षा लेने के वाद छ लेश्यामेंसे कोईभी लेश्या हो तो वह आदिकी तीन लेश्या समझनी, परन्तु भावतो ऊपरकी तीनही समझनी | सातवे गुणस्थानक में तेजो, पद्म तथा शुक्लही होती है । कारण यह है कि - आर्त- रौद्रध्यान नहीं होनेसे अति विशुद्धता होती है। आठवे गुणस्थानकसे बारहवे गुणस्थानक पर्यन्त छदमस्थ मुनिको एकही शुक्ल लेश्या होती है ।
प्रश्न- ७ ज्ञातासूत्र मैं पांचमा अध्येमें ज्ञानदर्श चात्ररूपी जात्रा कही और आप तुर्जा वगेरकी जतरा परूपते हो सो कीस सखाकीरूसे |
उत्तर - ज्ञातासूत्र के पांचवे अध्ययन में पृष्ट ५७९ में ज्ञान - दर्शन - चारित्र - तप संयमादि रूपी यात्रा कही है। सो ठीक है । उस बात को हम लोग भी मान्य करते हैं । परन्तु इससे शत्रुंजय वगैरहकी यात्राका निषेध नहीं होता है | देखिये, उसी अध्ययनके ५९२ वे पृष्टमें थावच्चा अणगार, एक हजार साधु के साथ पुंडरिक पर्वत पर गये हैं। धीरे धीरे उस पर्वत पर चढे । इत्यादि पाठ है । वह पाठ यह है :
" तएषं से थावच्चापुत्ते अणगारसह -
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