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श्वेताम्बर तेरापथं मत समीक्षा ।
और पीछेसे मुनिपणा अंगीकार किया हो, तो छद्मस्थ मुनि, पहिले आयुष्य बांधा हो, उस गतिमें जाता है, यदि पहिले आयुष्य न बांधा हो तो अवश्य देवलोक में जाता है | जाति पंचेन्द्रियकी । इन्द्रियमें पंचेन्द्रिय । काय त्रसकाय । पर्याय मनुव्यत्व । प्राण दस होते हैं। शरीर मुख्य औदारिक होता है, पछेिसे लब्धिसे वैक्रिय तथा आहारक कर सकते हैं। भव आश्रयी वैक्रिय शरीर बालेको मुनिपणा नहीं होता है । छद्मस्थ मुनिको योग तेरह होते हैं, कार्मण तथा औदारिकमिश्र ये दो योग नहीं होते हैं । उसका विवेचन इस तरह है:
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छडे गुणठाणे वाले मुनिको आहारक तथा वैक्रियलब्धि यदि हुई हो तो प्रमत्तगुणठाणेमें ४ मनके, ४ वचनके, १ औदारिक, १ वैक्रिय, १ वैक्रियमिश्र, १ आहारक तथा आहारकमिश्र ये तेरह होते हैं । और अममत्त आहारकमिश्र तथा वैक्रियमिश्र दो न होनेसे ग्यारही होते हैं । अपूर्वादिक पांचों गुणठाणे में ४ मनके, ४ वचनके तथा ? औरादिक काययोग । यहाँपर अति विशुद्ध चारित्र होनेसे लब्धि हेतुक चार योग नहीं होते हैं । अत एव ९ योग होते हैं । अब यदि छछे गुणस्थानकवाले मुनिको आहारकलब्धि न हो तो ११ योग । वैक्रिय भी न हो तो ९ योग । वैक्रिय न होवे और आहारक होवे तो भी ११ योग होते हैं । सातवेमें मिश्र कम करना । उपयोग सात होते हैं: - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, ये चार तो नियमेन होते हैं । यदि अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ हो तो छे होते हैं। और यदि अवधिज्ञान न हुआ और मनःपर्यव ज्ञान हुआ हो तो पांच होते है तथा दोनों
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