________________
४०.
श्वेताम्बर तेरापथ-मत समीक्षा ।
महानुभाव ! प्रतिमापर द्वेष होनेसे उलटे प्रश्न करते हो परन्तु वेही प्रश्न जिनवाणी परभी घट शकते हैं । प्रभुजीकी वाणीमें जो तीस गुण थे, वे पेंतीस गुण शाहीसे कागजपर लिखी हुइ वाणीमें नहीं हैं। तथापि स्थापना रूप वाणीको जिनवाणी मान रहे हो तथा अपने बंधुओंको 'चलो जिनवाणी सुननेको ऐसा कहकर लेजाते हो। भला, कागज और शाही जिसमें शेष रही हुई है, उसको जिनवाणी मानने तुम्हें जरासाभी संकोच नहीं होता है, और जिनपतिमाको जिनवर माननेमें पेटमें दर्द होता है, यहकितनी आश्चर्य की बात है ?
"प्रश्न-५ श्री केवलग्यानी जिनेसर देवमें जीवरो भेद गुणगंणा ओर डंडक कीसो पावै ओर जिनेस्वर देवकी गती जात काया कीसी और जिनस्वर देवमैः प्रजा प्रांण जोग उप्पीयोगलेश्या आत्मा कीतनी कितनी कोनसी कोनसी पावेंः और जिनेस्वर देव शनि हैं या अशनि है सो उनका उत्र बतीस सासत्रसे दिरावै"
उत्तर-केवलज्ञानी जिनेश्वरमें गर्भज पंचेन्द्रियका एक भेद है। केवलज्ञानी तीसरे शुक्ल ध्यानमें रहें, वहाँतक उनको तेरहवाँ गुणस्थानक होता है । और जब चतुर्थ शुक्ल ध्यानके पायेमें वर्तते हुए शैलेशी अवस्थामें रहें, उस समय चौदहवाँ गुणस्थानक होता है । १४ वे गुणस्थानकमें पांच अक्षरोका उच्चारण करे, उसनेही समय रह करके अन्तिम समयमें समस्त काँका क्षय करके सिद्ध गतिमें जाते हैं। केवलज्ञानी मनुष्य दंडकमें लाभे। गति निर्वाणकी।जाती पंचेन्द्रियकी । काय त्रयकाय । पर्याय मनुध्यत्वका । प्राण दश होते है, पांच इन्द्रिय, तीनबल, श्वासोश्वास तथा आयुष्य । योग सात १ सत्यमनोयोग, २ असत्यामृषामनो
योग, ३ उसी तरह दो वचनके, ४ कार्मणकाययोग (समुद्घाShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
P
www.umaragyanbhandar.com