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श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा ।
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परिश्रम व्यर्थही होगा। वैसे सिवाय प्रतिमा माननेके केवल नामसे काम चलता नहीं है। 'महावीर' इस नामका कई जगह प्रयोग होता है । ' महावीर' हनुमानका नाम है, 'महावीर' सुभटका नाम है । ' महावीर ' किसी व्यक्तिका नाम है। और ' महावीर' परमात्मा 'वीर' का भी नाम है । अव 'महावीर ।' महावीर ' 'महावीर ' ऐसा जाप करनेसे कोई यह पूछे कि-कौनसे महावीरका जाप करते हो, तब यह कहना ही पडेगा कि-ज्ञातपुत्र, त्रिशलानन्दन, क्षत्रीयकुंड ग्राममें जन्म लेने वाले, तथा सात हाथका जिनका शरीर था, ऐसे महावीर देवका जाप करते हैं । जब महावीर देवकी प्रतिमा ही हमारी दृष्ठिगोचर होगी, तब हमें विशेष स्पष्टिकरण करनेकी आवश्यक्ता नहीं रहेगी । एक दूसरी बात लीजिए । प्रश्न पूछनेवाले महानुभावोंसे मैं यह पूछता हूं कि तुम्हारा कोइ साधु, पघडी तथा धोती पहन करके पाटपर बैठ जाय, तो उसको आप साधु कहेंगे या नहीं ? क्यों कि प्रतिमा अर्थात् मूर्तिपर जिसका ख्याल नहीं है, उसके लिये तो पघडी पहना हुआ हो, या खुले सिर हो, दोनो एक समान है। नाममें तो फर्क हुआ ही नहीं है । परन्तु नहीं, यही कहना पडेगाकि-वह साधु नहीं है । क्योंकि उसमें साधुका वेष नहीं है-साधुकी आकृति नहीं हैसाधुकी मूर्ति नहीं है । कहिये, मूर्तिमानना सिद्ध हुआ कि नहीं ? । सज्जनो ! निर्विवाद सिद्ध 'स्थापना निक्षेप' का निषेध करके क्यों भवभ्रमण करते हो ?। प्रतिमाको उपचरित नयसे साक्षात् जिनवर मान करके कई भक्तजनोंने सेवा-पूजा की है। वह बात चौदवे प्रश्न के उत्तरमें विशेष रूपसे लिखि जायगी। अतएव यहांपर लिखना उचित नहीं समझते ।
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