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३८ श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा। - --
- - -- -- सगंणो और डंडककीसो पावे तीसरी प्रज्याये प्रांण सरीर जोग उप्पीगो कर्म आतमा और लेस्या कीतनी ओर कोनसी कोनसी पावैः चोथा जिनप्रतिमा शनि या अशनि तस्य या थावर सो ईन कुल वार्ता का उत्तर फरमावैः । ___ उत्तर-प्रतिमामें गति, जाति, इन्द्रिय, जीवका भेद, गुणस्थानक, दंडक, पर्याय, प्राण, शरीर, जोग, उपयोग, कर्म,आत्मा, लेश्या, सन्नी या असन्नी, बस अथवा स्थावर ये बातें पूछनेवाले तेरापंथी महानुभावोंको समझना चाहिये कि नामनिक्षेपोंमें पूर्वोक्त वस्तु जितनी पाई जाय, उतनी ही जिनप्रतिमामें पाई जाती है। जैसे नामको मान्य रखते हैं, वैसे ही स्थापनाको भी माननाही पडेगा । क्यों कि स्थापना जड है । तो क्या नाम जड नहीं है ? नामभी जड है । नामको मानकरके भी स्थापनाको नहीं मानना, इसके जैसी अज्ञानता दूसरी क्या हो सकती है ? लेकीन ठीक है, जिनके अन्तःकरणोंमें मिथ्यात्वरूप पिशाचने प्रवेश किया है, वे तत्त्वको कैसे देख सकते हैं। देखिये, जैसे नाम और नामवालेका संबंध है वैसे स्थापना और स्थापनावालेका संबन्ध है । नाम माननेवालेको स्थापनाको मान देनाही चाहिये। अकेले नामसे कभी कार्य नहीं हो इकता । जैसे किसी शहरमें किसीका लडका गुम गया है । उस लडकेके पिताने पोलीसमें यह सूचनादी कि-मेरा केशरीमल्ल नामका लडका गुम गया है । पुलीसकी यह ताकत नहीं है कि-सिर्फ नामसेही उसकी तलास करके उसके पिताको दे दे। चाहे पुलीस भलेही केशरीमल्ल नामके हजार लडकोंको इकट्ठे करे, परन्तु जब तक जो केशरीमल्ल गुम हो गया है, उसकी आकृति
वगैरका ज्ञान पुलीसको नहीं हुआ है, वहाँ तक उसका सारा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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