________________
श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा
३७
इत्यादि अनेक चीजोका वर्णन है। ऐसे नंदीसूत्र तथा समवायांगमेंभी कहा है । इससेही सिद्ध होता है कि आणंदादि श्रावकोंके मंदिर थे । अगर उन्होंने नहीं बनवाए थे तो 'उनके मंदिर' ऐसे क्यों कर कहते है।
यहाँ पर 'चैत्य' शब्दका 'ज्ञान'साधु ' या 'बगीचा' अर्थ नहीं होसकता। क्यों कि-उन्ही अर्थको कहने वाले 'धर्मकथा' 'धर्मगुरु ' तथा ' उद्यान' शब्द लिये हुए हैं ।
___ अब संघकी बात यह है कि उस समयमें भी गिरिराजश्री शत्रुजयादि तीर्थ विद्यमान ही थे , तो उस समयके श्रावक अवश्य संघ निकालते थे । संघ निकालनेकी परिपाटी नयी और शास्त्रविरुद्ध नहीं है, यह बात दूसरे प्रश्नमें अच्छी तरह दिखला दी है । हमारी समझमें प्रश्न पूछनेवाले तेरापंथी महानुभाव संघका मतलब ही नहीं समझे हैं । हम पूछते हैं कि-आप लोग पाट उत्सव करते हैं, हजारों आदमी इकठे हो करके आनंद मनाते हो । हजारों श्रावक-श्राविका मिलकरके तुम्हारे पूज्यको बंदणा करनेके निमित्त चातुमासमें जाते हो, वहाँ आपस आपसमें खानपानसे भक्ति करते हो। बतलाओ, इसका नाम संघ है कि-नहीं ? । क्या तुम्हारे माने हुए संघके ऊपर श्रृंग होते है ? । बड़े आश्चर्यकी बात है कि-खुद संघ निकालते रहते हो, और दूसरेको निषेध करते हो । हमें इस बातका जवाब दीजिये कि-किस सूत्रके कौनसे पाठके आधारसे आप लोग उपर्युक्त प्रवृत्ति कर रहे हो ? । हमें बडी भावदया आती है कि-सच्चे तीर्थके वैरी हो करके, आप लोग दूसरे रास्ते चले जा रहे हो।
"प्रश्न-४ पाश्यांण वो रत्नांरी जिन प्रतामारी अवलतो गत जात इंद्री कीसी दो यम जिन प्रतमाम जिवरो भेद गुण
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com