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श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा |
सूत्रमें चंपानगरीका वर्णन आया है, वहाँ पर 'अरिहंत चेइयाई बहुला' इत्यादि पाठ से उस समय में अरिहंतके अनेक मंदिर थे, वैसा सिद्ध होता हैं । दूसरी यह बात है कि आणंदादि श्रावकों ने अपने जीवनमें जो २ कार्य किये हैं, उन सभीका उल्लेख सूत्र में नहीं आया है । इससे यह सिद्ध नहीं होता है कि उन्होंने मंदिर नहीं बनवाये थे, या संघ नहीं निकाले । आनंदादि श्रावकोनें प्रतिमाको प्रमाण की है, इस बातका पुरावा यह है कि व्रत उच्चारणके समय सम्यक्त्वका आलावा आया हैं । जिसमे समकित की शुद्धिके लिये अन्यदर्शनीय, अन्यदर्शनके देव तथा अन्यमतिओंने स्वीकार की हुई जिनमतिमाको वांदु नहीं - पूजा न करूं, इत्यादि पाठ मिलते हैं । और इससे जिनप्रतिमा तथा जिनमंदिर थे, यह भी सिद्ध होता है । तथा जहाँ प्राणातिपात विरमण, वगैरह बारहव्रत लिये हैं, वहाँ अनेक प्रकारके नियम किये हैं । उन नियमोंमें यदि जिनमंदिर कराने में पाप होता तो वह भी नियम कर देते कि - जिनमंदिर करवाऊं नही । ऐसा नियम नहीं करनेसे निश्चय होता है कि वे जिन मंदिर बनवाने में आरंभ नहीं समझे थे । उन श्रावकोंने जिनमंदिर बनवाएं हैं। इसका पुरावा यह है कि-नंदीमुत्रके ४६५ वे पृष्ठमें आणंदादि श्रावकों का इस तरह अधिकार है:- “उवासगदसा सुणं सवासगाणं नगराई उज्जागाईं चेइचाई वणसंडाई समोसरलाई रायाणो अम्मापियरो धम्मायरिया धम्मकदाओ" इत्यादि इसका मतलब यह है कि उपासकदशांगसूत्रमें आणंदादि श्रावकों के नगर, उद्यान, चैत्य (जिनमंदिर) वनखंड, समवसरण, राजे, मात-पिता, धर्मगुरु तथा धर्मकथा
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