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श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा। ३५ PRAKAKKARMA
नंदिसूत्र बत्तीस सूत्रोंमे है । उसी नंदिसूत्रमें महानिशीथ सूत्रका नाम दिया हुआ है । उसी महानिशीथसूत्रमें लिखा है कि-'जिनमंदिर करानेवाले बारवे स्वर्गमें जाते हैं । अब विचारनेकी बात है कि-जो समकितवंत जीव हैं, वे वैमानिकका आयुष बांधते हैं। इस लिये जिनमंदिर करानेवाले खास सम्यक्दृष्टि हैं, ऐसा सिद्ध होता है । और समकितवंत जीवोंको आज्ञा और धर्म होनेसे हम लोग इस बातका उपदेश देते हैं।
अब रही संघनिकालनेके विषयकी बात। इसके विषयमें समझना चाहिये कि-परमात्मा महावीर देवके समय श्रेणिककोणिक वगैरह कई राजे, रथ, घोडे, हाथी, पैदल वगैरह चतुरंगी सेनाके साथ बडे आडंबरसे भगवानको बंदणा करनेकों जाते थे। वहाँ रथोंको कइ जगह 'धर्म रथ' की उपमा दी है । इसके सिवाय ज्ञाताधर्मकथा तथा अंतगडदशांगमें शत्रुजय पवेतका नाम जगह २ आता है । उस तीर्थ पर हजारों मुनिराज सिद्ध० बुद्ध० मुक्त हुए । उस पर्वतके दर्शन करनेके लिये,भरत महाराजादि कई राजे-महाराजे तथा शेठ-शाहुकार संघ निकाल करके संघवी-संघपति हुए हैं । उनके नामपर उपनाम लगे हुए हैं। इससे सिद्ध होता है कि संघ निकालनेकी परंपरा सूत्रके अनुसार ही है।
"प्रश्न ३ आणदकांमदेव आददे १० श्रावक हुवे है वे महा ऋद्धिवांन बारे व्रतधारी हुवे उणांने जैन मंदिर वो सीगकीउन कडाय अगर कडायै वो करायै हुवै तो पाठे बतलावै।"
उचर-परमात्मा महावीर देवके समयमें लोग अपने मकानोंमें मंदिर रखते थे और भगवान्की पूजा करते थे । उवाई
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