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श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा ।
आग्रहको न छोडो, तो तुम्हारे भाग्यकी बात है। प्रतिमाकी पूजा करने वाला समकित दृष्टि, अन्य मिथ्यादृष्टि दिखलाया, तो फिर इससे अधिक क्या चाहिये? रायपसेणी, जीवाभिगम, ज्ञाता इत्यादिमें प्रत्यक्षपाठ विद्यमान है, तिसपर भी धर्म तथा आज्ञाका प्रश्न पूछने वाले आप लोग अभी कैसे अँधेरेमें फिरते हो, यह स्वयं विचार करो।
"प्रश्न-२ श्रीजिनेसर देवने बतीस सात्रमे कोसी जगा जैनमंदीर कराने और संग कडानेमै अग्या नहीं फरमाई है न धर्म फरमाय है तो फेर आप ईण दोनां कामांमे धर्म ओर अग्या कीसी सासत्रके रूसे परूपते हो सो बतीस सात्रोमें इनका अधिकार बतलावै ।" ___ उत्तर-हम पूछते हैं कि-जिनेश्वरदेवने जिनमंदिर बनवानेकी
और संघ निकालनेकी आज्ञा और धर्म नहीं फरमाया, ऐसा ज्ञान आपको कहांसे हुआ ? । क्या सूत्रमें निषेध आप लोगोंने किसी जगह पाया है ? यदि पायाथा, तो वह पाठ स्पष्ट लिखना चाहिये था। सूत्रों में जगह जगह मिथ्यात्वके कारणोंकी व्याख्या आई है । उसमें किसी जगह जिनमंदिर और संघ निकालना मिथ्यात्वका कारण नहीं दिखलाया । यदि मिथ्यात्वका कारण और जिनाज्ञा बाहर है, ऐसा कोई लेख आप लोगोंके दृष्टिगोचर हुआ हो तो दिखलाना चाहिये था। और यदि नहीं हुआ है तो समझलो कि-जैनमंदिर करानेमें और संघ निकालनेमें प्रभुकी आज्ञा है । और जहां आज्ञा है, वहां धर्म है। इतना कहनेसे अगर आप लोगोंको संतोष न होता हो तो लीजिये और प्रमाण।
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