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श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा। ३१ * - *- * - * -* * -*-* ___ "जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छई, उवागच्छईत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुतो आयाहिणं पयाहिणं करेंति २ ता वंदइ नमंसइ नमंसित्ता एवं वपासी अम्हेणं भंते सूरियाभस्स देवस्स आभियोगिया देवा दिवाणुप्पियं वंदामो नमसामो सकारेमो संमाणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामो देवाई समणे भगवं महावीरे ते देवे एवं वयासि पोराणमेयं देवा ! जायमेयं देवा ! कीच्चमेयं देवा ! करणिजमेयं देवा ! आचिण्णमेयं देवा ! अन्भण्णुण्णायमेयं देवा !।" __अर्थात्-जहां श्रमण भगवान महावीर हैं, वहां आ करके भगवान्को तीन प्रदक्षिणा दे करके ऐसे बोले:-हे भगवन् ! हम सूर्याभदेवके आभियोगिक (नोकर), आप देवानुप्रियको बंदणा करते हैं । नमस्कार करते हैं। सत्कार करते हैं ।
सन्मान करते हैं । कल्याण मंगलके निमित्त देव प्र. तिमाकी तरह पर्युपासना करते हैं । (देवोंके ऐसे कहनेके बाद) 'हे देवो ! ऐसा आमंत्रण करके श्रमणभगवान् महावीर उन देवोंके प्रति इस तरह बोले:-'हे देवो ! यह प्राचीन है, यह आचार है, यह कृत्य है, यह करणीय है, यह पूर्व देवोंने आचरण किया हुआ है। इस तरह समस्त तीर्थकरोने आज्ञा की है, और मेरी भी आज्ञा है।
ऊपर लिखे हुए पाठमें, भगवान्ने, देव प्रतिमाकी तरह पूजा करनेमें ' तुम्हारा कृत्य, ' तुम्हारा आचार' वगैरह कह
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