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३० श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा। KAR K -
- इन बातोंसे सिद्ध होता है कि-जिन्होंने बत्तीस सूत्र (मूल) के ऊपरही अपना आधार रख छोडा है, के यथार्थमें भूले हुए हैं । यदि वे बीस सूत्रके अनुसारभी चलना सीकार करते हों तो उनको सूत्रकी आज्ञानुसार, और मूत्र तथा टीका-नियुक्ति वगैरह अवश्य मानने चाहिये ।
__ आश्चर्यकी बात है कि-बत्तीस सूत्र मानने वाले महानुभाव एकही कर्ताके एक वचनको मानते हैं, और दूसरे वचन को उत्थापते हैं । जैसे श्रीभद्रबाहुस्वामिकृत दशाश्रुतस्कंधको मानते हैं, और उन्ही भद्रबाहुस्वामिकृत दश नियुक्तिओंको नहीं मानते हैं। कैसा अन्याय ?।
___ अब इस परामर्षको यहाँही समाप्त करके उन महानुभावोंके पूछे हुए तेईस प्रश्नों के जवाब देना आरंभ करते हैं । उनके प्रश्न जैसेके तैसे यहाँपर उद्धृत किये जायगें, जिससे पाठक देख लें कि-जिनको भाषा लिखनेकी तमिज नहीं है,जिनको प्रश्न कैसे पूछे जाते हैं ? यहभी मालूम नहीं है और जिनका एक एक शब्द मायः भूलसें खाली नहीं है, वे क्या समझ करके मूल सूत्रसे प्रश्नके उत्तर मांगते होगे?।।
प्रश्न १-श्री जीनप्रतीमाकी ध्रव्य पूजा करणेमे धर्म ओर श्री जिनेस्वरदेवकि-आग्या पुरूपते हैं सो जीनेस्वरदेवने बतीस सात्रांमे कीस जगे अग्या फरमाइ हें और धर्मका हे। ____ उत्तर-रायपसेणी सूत्रके पृष्ठ ३० में, सूर्याभदेवने, आभियोगिक देवोंको आमलकप्पा नगरीमें, जहाँ वीरमभु विचरतेथे, वहां एक योजन जमीन साफ करनेको कहा है । वहां देव,परमात्मा महावीर देवके पास जा करके इस तरह कहते हैं
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