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श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा । २९ ___ अच्छा, अब यदि वे, सूत्रों के अर्थ, मूल अक्षरोंसे ही निकालते हों, तो वह उनकी बडी भारी भूल है । सूत्रों के अर्थ, प्राचीन ऋषि लोगोंकी परंपरासे जो चले आये हैं वैसे, तथा अर्थ करनेकी जो रीति है उसीसे करने चाहिये । यह बात हम ही नहीं कहते हैं, परन्तु खास सूत्रकार फरमाते हैं । देखिये अनुयोग द्वारके ५१८ वे पृष्टमें लिखा है:___“ आगमे तिविहे पन्नत्ते, सुत्तागमे १, अत्था. गमे २, तदुभयागमे ३” ___अर्थात् सूत्रके अक्षर यह सूत्रागमे प्रथम भेद हुआ । अर्थ रूप आगम, जिसमें टीका-नियुक्ति वगैरह है, यह दूसरा भेद हुआ। और तीसरे भेदमें सूत्र तथा अर्थ दोनों आये।।
___ इससे भी सूत्रका वास्तविक अर्थ प्राप्त करनेके लिये टीका-नियुक्ति वगैरहकी सहायता अवश्य लेनी पडेगी।
अब यदि कोई यह घमंड रक्खे की-हम मूल सूत्रके अक्षरोंसे उनके यथार्थ अर्थको प्राप्त कर सकते हैं, तो वह बडी भारी भूल है । कई पाठ ऐसे होते हैं, जिनके अर्थके लिये, परंपरासे धारते हुए चले आर अर्थपर अवश्य दृष्टि दौडानी पडती है । सूत्रोंके थोडे अक्षरोंमें बहुत अर्थ निकलते हैं । अनुयोग द्वारके १२३ पृष्ठ · ढोढिणी गिणिया अमचे ' ऐसा पाठ है। इन कुछ नव अक्षरों से, कोई भी पंडित यथार्थ भावार्थ नहीं बतला सकना । ढोढणी कौनथी? गणिका कौनधी? मंत्री कौनथा ? क्या उनका संबन्ध था ? किस तरह हुआ था ? | ये बाते, मूल सूत्रके ९ अक्षरोंसे कभी नहीं निकल सकती। ऐसे २ अनेकों पाठ हैं, जिनके अर्थके लिये पूर्वाचार्योंकी बनाई हुई टीकाएं-नियुक्ति वगैरह पर ध्यान देना ही पडेगा।
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