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२८ श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा । -
* -* -* -* - * - * चूर्णि और टीकाका भी समावेश होता है । परन्तु मानते नहीं है। __अनुयोग द्वार सूत्रमें दो प्रकारका अनुगम कहा है:
"सुत्ताणुगमे निज्जुत्तिअणुगमे य । तया-निज्जुत्तिअणुगमे तिविहे पण्णचे उबग्घायनिज्जत्तिअणुगमे इत्यादि । तथा उद्देसे निइसे निगमे खित्त काल पूरिसे य” इत्यादि दो गाथाएं हैं ॥ . ____ अब हम पूछते है कि यदि पंचांगीको नहीं मानोगे तो उक्त पाठका अर्थ क्या करोगे ?। __ अच्छा इसके सिवाय और देखिये- ।
___ उतराध्ययन मूत्रके २८ वे अध्ययनकी २३ वी गाथा कहा है-- सो होई अभिगमरुई सुयनाणं जेण अत्यो दिदं । इकारस अंगाई पइन्नगं विहिवाओ य ॥१॥
___ कहनेका मतलब कि-अभिगमकीरुचि, केवल सूत्रोंसे ही नहीं होती, परन्तु प्रकरणोंसे लेकरके यावत् दृष्टिवाद पर्यन्तके जो मूत्र हैं, उनके पढनेसे होती है।
इससे भी सिद्ध होता है कि मूत्रके सिवाय और भी शास्त्र मानने चाहिये । ऐसे ऐसे पाठ होने पर भी वे लोग उन पाठोंके मुताविक चलते नहीं है । अव कहाँ रहा व तीस सूत्रोंको मानना ? बत्तीस मूत्रके कथनानुसार भी चलते हों तो उन लोगोंको नियुक्ति वगैरह अवश्य मानने ही चाहिए।
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