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श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा। २७ 分分合分的分总分总分总分总分长分的分合分总分的
बनाए हुए हैं। परन्तु यह उन लोगोंकी भूल है। गणधरोंने तो द्वादशांगीकी ही रचना की है। उसमें भी दृष्टिवाद तो विच्छेद गया है । अब रहे ग्यारह अंग । उन ग्यारह अंगोंको ही मानने चाहिये । किस आधारसे उपांगादि सूत्रों को मानते हैं ? यह दिखलाना चाहिये । यदि यह कहा जाय कि-नंदीसूत्रके आधारसे मानते हैं, तब तो फिर नंदीसूत्रमें कहे हुए सभी सूत्र नियुक्ति वगैरहको मानने चाहिये । नंदीसूत्र देवर्दिगणिक्षमाश्रमणका बनाया हुआ है, उस नंदीसूत्रको जब मानते है, तब देवगिणिक्षमाश्रमणके उद्धृत किये हुए सभी सूत्रोंको क्यों न मानने चाहिये। ___अच्छा ! अब जो बत्तीस सूत्र, माननेका दावा करते हैं, उनको भी पूरी चालसे नहीं मानते हैं, इसके नमूने कुछ दिखला देने चाहिये।
नंदीसूत्र जो बत्तीस सूत्रों से एक है, उसमें साफ २ लिखा है कि-'टीका, नियुक्ति तथा और सूत्र-प्रकरणादिको मानना चाहिये, परन्तु मानते नहीं हैं । इसके सिवाय देखिये भगवती सूत्रके २५ वे शतकके तीसरे उद्देशेमें पृष्ट १६८२ में कहा है कि"सुतत्यो खलु पढमो बीमो निज्जुत्तिमीसो भणियो। तश्ओ य निरवसेसो एस विही हो। अणुओगे ॥१॥"
अर्थात्-प्रथम सूत्रार्थ ही देना । दूसरे नियुक्ति सहित देना । और तीसरे निरवशेष (संपूर्ण) देना । यह विधि अनुयोग अर्थात् अर्थ कथनकी है।
इस पाठसे सिद्ध होता है कि-नियुक्ति को मानना, तिस पर भी क्यों नहीं मानते ? । तीसरे प्रकारकी व्याख्या भाष्य
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