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श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा। २५ ** * * * *
* * * * वे लोग यह कह करके ऊठ गये थे कि आधे घंटेमें प्रश्न भेजेंगे । परन्तु दूसरे दिनके बारह बजे तक कोई न आया। एक बजे २३ प्रश्नोंका एक लंबा चौडा चीट्ठा ले करके सब लोग आए । पंडितजीको बुलाकरके उन लोगोंने कहा:-पंडितनी, इसको पढिए । पंडितजी पढने लगे। पंडितजीको भी उस चीटेको पढते २ ऐसे २ शब्दोंका ज्ञान और अनुभव होने लगा जो कभी न पढेथे, और न सुने थे। पंडितनी वारंवार यह कहते जाते थे कि-'यह प्रश्न ठीक नहीं है, ' ' यहाँ पर यह शब्द न चाहिये, 'ये शब्द बिलकुल अशुद्ध हैं, ' तब तेरापंथी श्रावक कहने लगेः-'लिखने वालेका यह दोष है । ' ठीक ये भी जीवरामभट्टके सच्चे नातेदार ही निकले।
प्रिय पाठक ! तेरापंथीके २३ प्रश्न, ज्योंके त्यों, उनके उत्तरके साथ दिये जायेंगे, जिससे विदित हो जायगा कि जिनको भाषाकी भी शुद्धाशुद्धिका ख्याल नहीं है वे सूत्रोंके पाठोंको क्या समझ सकते हैं । खैर, अभी उनके २३ प्रश्नों से कुछ शब्द, नमूनेकी तौर पर यहाँ उद्धृत करना समुचित समझता हूँ। देखिये, 'प्रथमकवले मक्षिकापातः' इस नियमको चरितार्थ करता हुआ श्री जिनाय नमोः, 'ध्रव्य पूजा,"आग्या,"पुरुपते," अग्या, आदिके बदले 'आददे, 'पाश्यांण,' पर्यायके बदले 'प्रज्याये, त्रसके बदले 'तस्य' 'उप्पीयोग' छद्मस्थके बदले 'छंदमसत, अध्ययनके बदले 'अध्ये, दर्शन चारित्रके बदले 'दर्शचात्र' शत्रुजयके बदले 'श्रेतुर्जा,' 'व्याकर्ण,' हिंसाके बदले 'हंस्या' कहाँ तक लिखु ? उनके २३ प्रश्नों में अशुद्धरूपी कीडे इतने बिलबिलाते हैं, जिनका कुछ ठिकानाही नहीं।
अब इस वृत्तान्तको यहाँ ही समाप्त करता हूँ, और आगे
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