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श्वेताम्बर तेरापथ-मत समीक्षा।
इस बात पर आये कि-प्रश्न लिख करके महाराजको दिये जाँय । दवादकलम-और कागज मंगवाया गया । उतने तेरापंथीका एक आदमी आया । उसने उन लोगोंसे कहा:-' चलिये आपको बुलाते हैं। यह भी एक तरहकी चालबाजी ही थी। अस्तु, सब लोग चले गये। ____ एक बात और कहनेकी रह गई । जिस समय ' महानिशिथ प्रमाण है कि-अप्रमाण ? ' इस प्रकारकी बात चली थी, उस समय केसरीमल्लजीने यह कहा था कि-"मूर्ति पूजाकी प्ररुपणा करे, वह साधु नरकगामी है, वैसा उसमें लिखा है" । परन्तु उस पाठमें 'प्ररुपक' शब्द नहीं है, यह बात, उपाध्यायजी श्रीइन्द्रविजयजी महाराजने, पंडितजीके समक्ष केशरीमलजीको समझाई । केशरीमलजीने अपनी भूल स्वीकार की । इतना ही नहीं, परन्तु पंडितजीके कहनेके मुताबिक सभाके बीचमें जोर शोरसे अपनी भूल स्वीकार की ।
__ आचार्य महाराजने मूर्तिपूजाके विषयमें बहुत समझाया तब उसने कहा कि मैं दर्शन हमेशा करता हूँ। पूजाके विषयमें कहा तब वे कहने लगे:-" मैं लकीरका फकीर हूँ।"
एक और भी बात है । अनुकम्पाके विषयमें तेरापंथी कहते हैं कि-'महावीर स्वामी चूक गये।' ऐसा आचार्य महाराजने कहा तब पंडितजीने तेरापंथी श्रावकोंसे पूछा:- क्या यह बात सत्य है ?' | जब ये लोग बात ऊडानेकी चालाकी करने लगे, तब पंडितजीने फिर कहा:-' जो बात हो, सो बराबर कहिये।' इतने में बाईस टोलेवाले बोल लठे कि-हम उस बातको नहीं मानने हैं।
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