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श्वेताम्बर तेरापंथ - मत समीक्षा |
इसके उत्तर में शिरेमलजी कहने लगे, तब उसके पक्षका दूसरा आदमी निषेध करने लगा। दोनोंको आपस में 'हा' 'ना' की लडाई हुई, और यही दश मिनिट चली गई । इसके बाद पंडितजीने कहा कि :- महाराजजी आपही फरमाईये । आचार्य महाराजने उस पाठको निकाल करके पंडितजीके सामने रख दिया । "गोशालेने, आनंदसाधुके पास कही हुई, चार वणिक्की कथा कही । वल्मिक (राफडे) के तीन शीखर तोडे, जिसमेंसे जल-मुन्नर्ण वगैरह माल नीकला | चौथा शिखर तोडनेके लिये खडा हुआ, तब वृद्ध चणिक शिक्षा देता है । वे वणिक्के विशेषण हैं, धनके विशेषण नहीं हैं । इस बातको सुनकरके तथा पाठको देख करके पंडित - जी आश्वर्यमग्न हो गये और उन लोगोंकी अज्ञानता पर ति रस्कार जाहिर करने लगे ।
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जब ढूंढक तथा तेरापंथी, यह समझ गये कि - 'पाठ उलटा है - अपने कहे मुताबिक नहीं है ' तब कहने लगे कि"हम यहां निःश्रेयस शब्दका अर्थ मुक्ति नहीं है, ऐसा कहना चाहते हैं ।" पंडितजी ने कहा :- ' महाराज इसका उत्तर क्या है ? ' ।
आचार्य महाराजने फरमाया: - "शिव-कल्याण - निर्वाण तथा कैवल्य वगैरह मुक्तिके ही पर्याय हैं । " पंडितजीने कहा: - ' बराबर है । निःश्रेयस शब्द दूसरे शतकके प्रथम उदेशेमें है । वहाँ मुक्ति अर्थ किया हैं।'
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इत्यादि बातों से स्पष्ट मूर्ति पूजा सिद्ध होने लगी । तब श्रावक लोगोने आपस में गडबड मचा दी। इसके बाद वे लोग
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