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श्वेताम्बर तेरापंथ - मत समीक्षा ।
बीचमें दोनों पक्ष श्रावकोंमें ऐसी गडबड मचजाती थी कि - कोई क्या कह रहा है, यह भी नहीं सुना जाता था । परन्तु पंडित प्रवर परमानन्दजी, उन लोगोंके व्यर्थ कोलाहलको, शान्त कराते थे ।
वकील शिरेमलजी, लालचन्दजी तथा युगराजजीने कहा :- "सूर्याभदेवने बत्तीस वस्तुकी पूजाकी है । उसी तरह जिनप्रतिमाकी पूजा भी की है। "
पंडितजीने कहा :- " महाराजजी ! इसका उत्तर क्या है ? । क्यों कि ये लोग जिनप्रतिमाकी पूजाको, और पूजाओंके समान मानते हैं । यदि ऐसा ही हो तो विशेष बात ठहरेगी नहीं । "
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आचार्य महाराजने कहा : - “ जिनप्रतिमाकी पूजाके समय हितकारी - कल्याणकारि - सुखकारी आगे मुझे होगी ऐसा कहा है तथा नमुत्थुणं कहा है, वैसे शब्द यदि ३१ वस्तुओंके आगे कहे हों, तो दिखलाओ। अगर वैसा नहीं है, तो कदाग्रह ग्रहसे मुक्त हो जाओ ।" तेरापंथीके श्रावकोंने कहा :- " हियाए सुयाए" इत्यादि पाठ भगवती सूत्रमें है । वहाँ धन निकालनेके लिये कहा है । धनमें कुछ धर्म नहीं है, तथापि कहा है, इसका क्या कारण ? "
आचार्य महाराजने कहा :- " उस पाठका मतलब आपको याद है ?” उन्होने कहा :- हां याद है । भगवतीसूत्रके दूसरे शतकके प्रथम उद्देशेमें तथा पन्दरहवे शतकके प्रथम उद्देशेमें वह अधिकार है । "
आचार्य महाराजने कहा :- " वहाँ पर कैसा अधिकार चला हैं ? उसका मतलब क्या है ? "
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