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श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा। २१ - र- र- - -- -
- इसके उत्तरमें यह कहा गया कि-"साधु चैत्यकी पैयावच करे, ऐसे पाठोंके साथ, उपर्युक्त पाठका विरोध आता है। इस लिये पूर्व जो आश्रवद्वार है, उसके अधिकारि अनार्य लोम दिखलाये हैं । अत एव जहाँ देवमंदिर-प्रतिमा वगैरह जो २ बातें हैं, वे अनार्यके लिये समनना । देवमंदिर कहनेसे जिनमंदिर नहीं घट सकता । जिनमंदिर वैसा पाठ वहाँ नहीं है।"
एसा कहनेसे सब लोग चूप हो गये । पुनः सूर्याभदेवकी पूजा संबंधी प्रश्न उन लोगोंने ऊठाया । उन्होंने कहा:-"सूर्याभदेवने जैसे पूजाकी, वैसे मिथ्यात्वी देव तथा अभव्य भी पूजा करते हैं।"
श्रीमान् पं० परमानन्दजीने कहाः " पूजा हुई, यह आप स्वीकार करते हैं, सूर्याभदेव समकिति है, वह भी आप सीकार करते हैं, तो फिर पूजा समकिती जीवोंकी करणी सिद्ध हुई।"
इतनेमें एकने कहाः-"मिथ्यात्वी देव पूजा करते हैं, अभव्य भी करते हैं । अत एव वह तो देवोंका आचार है।"
आचार्य महाराजने कहा:-"महानुभावो ! अभव्य-मिथ्या दृष्टि जिनप्रतिमाकी पूजा करते हैं, ऐसा कोई पाठ तुम्हारी - ष्टिमें है ? यदि हो तो दिखा दीजिये, जिससे खुलासा
हो जाय । ".. • एक बुढा आदमी बीचमें बोल ऊठाः-,,क्या सर्व इन्द्र
समकित दृष्टि हैं ?" आचार्य महाराजने कहा 'हो' । तब वह कहने लगाः-'नहीं, समकित दृष्टि नहीं है' । तब लालचन्दजी · तथा शिरेमलजीने उसको रोका और कहा:-"इन्द्र समकिति
हैं।" जब उसके पक्षवालोंने कहा, तब वह चूप हुआ। बांध Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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