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२० श्वेताम्बर तेरापंथ मत समीक्षा । * * * * *
* * * * देते कि- उसमें मेरी आज्ञा नहीं थी अथवा योहि कह देते कि-मूर्याभदेवने नाटक करके पाप कर्म बांधा है। इनमें से कुछ भी नहीं कहनेसे नाटक तथा पूजा दोनों सूर्याभदेवको लाभदायक है, इसमें जरा भी शक नहीं।"
तेरापंथी श्रावक युगराज बोला कि-" भगवतीसूत्रमें जलते हुए घरसे धन निकाल लेने, तथा वल्मिक ( राफडे )के शिखर तोडनेसे धन निकालनेके समय 'हियाए सुहाए इत्यादि पाठ कहा है । तो क्या धन निकालनेमें भी मोक्ष धर्म था ?"
उपाध्यायजी श्रीइन्द्रविजयजीने पूछा:-" आपने भगवतीसूत्रके जो दो पाठ है, उनको देखे हैं ? अगर देखे हों तो कहिये वे कौनसे शतकमें हैं ? "
तब वे बोले:-" इस बख्त हमें याद नहीं हैं।" ऐसा कह करके सब चले गये । दूसरे दिन दो बजेका समय निश्चय किया गया।
निश्चय करनेके मुताबिक दो बजेके समय कोई न आया, बल्कि चार बजे तक कोई नहीं आया । चार बजनेके बाद तेरापंथीकी तरफसे एक आदमी आ करके कह गया कि-"आज सूत्र नहीं मिला । कल आपका लेक्चर होनेसे परसों एकमके दिन दुपहरको आवेंगे ।" ___ एकमके दिन दुपहरको सब लोग उपाश्रयमें आए। आदमिओं की भीड बहुत हो गई थी, परन्तु सब लोग शान्तचितसे श्रवण करते थे। जिनपूजाके विषयमें बहुत चर्चा हुई। तेरापंथी तथा ढूंढियोंकी तरफसे यह प्रश्न ऊठा कि-'प्रश्न व्या
करणमें देवमंदिर तथा प्रतिमा करानेवाला मंदमति है, ऐसा • कहा है, इसका क्या कारण ? ।'
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