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घेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा । +++
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KKA भगवानने न तो आदर किया है और न आज्ञा दी है । यदि धर्म होता तो भगवान् क्यों न आज्ञा देते ?"
. उपाध्यायजी श्रीइन्द्रविजयजी महाराजने कहाः-"महानुभाव ! भगवान् मौन रहे, वैसा तीसरा पद है:-'तुसणीए संचिट्ठति' । यदि पापका कारण होता तो भगवान् अवश्य निषेध करते । कई जगहाँपर भगवान्ने पापके कारणोंमें निषेध किया है । परन्तु ऐसा कहीं भी आप दिखा सकते हैं कि पापके कारणोमें भगवान् मौन रहे हों ?।"
_इस चर्चा में विद्वदल पं० परमानन्दजी मध्यस्थ थे। पंडितजीने कहा:-' अनिषिदं स्वीकृतम् ' इस न्यायसे सूर्याभदेवका नाटक प्रभुकी आज्ञा बाह्य नहीं है । तदन्तर सूरीश्वरजीने, सभाके समक्ष भगवान् मौन क्यों रहे ? इसका रहस्य इस तरह समझाया:
"भगवान् यदि सूर्याभदेवको नाटक करनेकी आज्ञा दें तो चौदहहजार साधुओं तथा साविओके स्वाध्याय ध्यानमें विघ्न होता है । यदि निषेध करें, तो भक्तिभरानिर्भर मनवाले देवोंकी भक्तिका भंग होता है । अत एव प्रभु मौन रहे । इससे मूर्याभदेवने नाटक किया, वह प्रमाण है। अप्रपाण नहीं । प्रभु इसमें सम्मत न होते तो दूसरीवार, सूर्याभदेवने आज्ञा .मागी, उस समय प्रभु साफ 'ना' कह देते । अथवा दृष्टि फिराकर बैठ रहते । उसमें से कुछ भी नहीं किया तथा सूर्याभ
देवने जो २ नाटक किये उसकी चर्चा जब गौतमस्वामीने भग. वानसे पूछी है, तब जो बातथी वह भगवान्ने कह दी है । अगर
भगवानकी निषेध बुद्धि होती तो भगवान् साथ २ यह भी कह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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