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श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा ।
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'पाली (मारवाड) में तेरापंधिओंके साथ चर्चा ।'
एक दिन घाणेरावाले गणेशमलजी तथा हीराचंदजी तातेडको आपसमें जिनपतिमा तथा मंदिरके विषयमें बातचित हुई, उसमें गणेशमलजीने कहा:-"प्रतिमा पूजनेमें धर्म है । कई श्रावकोंने प्रतिमा पूजी है । " इत्यादि बातें होती थीं, ' इतनेमें शिरेमलजी नामक तेरापंथी श्रावकने, जो वहां उपस्थित थे, गणेशमलजीसे कहा:-"क्या आप यह बात लिखकरके दे सकते हैं ?" गणेशमलजीने कहा:-'मैं खुशीसे लिख सकता हूँ।' पश्चात् हीराचन्दनी तातेड तथा गणेशमलजी इन दोनोंने हस्ताक्षर करके लिख दिया। इसके बाद इस बात. का निर्णय-चर्चा करनेके लिये दश-वीश आदमी मिलकर हमारे गुरुवर्य शास्त्रविशारद-जैनाचार्य श्रीमान् विजयधर्ममूरीश्वरजी महाराजके पास उपाश्रयमें आए। आते ही यह प्रश्न किया कि:-'महाराज ! प्रतिमा पूजनेमें धर्म है ?' आचार्य महाराजने कहा-'हां'। फिर पूछा 'कौनसे सूत्रमें ?' आचार्य महाराजने कहा:-रायपसेणीसूत्रमें । किस तरह ? देखोः
___ "सूर्याभदेवने उत्पन्न होनेके बाद अपने मनमें विचार किया कि-मुजको पूर्व-पश्चात-हितकर-सुखकर-मुक्त्यर्थ-आगामी भवमें सुखकारी क्या होगा ? इत्यादि विचार करके प्रभु पूजाकी, जहाँ नमुत्युणं वगैरह करके 'धृवं दाउं-जिणवराणं' इत्यादि पाठमें साक्षात जिनवर, ऐसा विशेषण देनेसे जिनप्रतिमा जिनतुल्य मानी हुई है।"
इत्यादि बातें सूरिजी फरमातेथे, इतनेमें युगराजनामक तेरापंथी बोल ऊठाकि “सूर्याभेदेघने नाटक किया, उस समय
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