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श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा |
सुंदर तो होती ही है । बस, थोडेही दिनों में गद्य-पद्यका अर्थ राजा स्वयं करने लगा । एक दिन पंडितजी परीक्षा लेने लगे । उस समय पंडितजीने वही ' शान्ताकारं पद्मनिलयं पदनाला श्लोक राजाके सामने रक्खा और कहा: - ' राजन् ! इसका अर्थ कारये. '
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राजा ' शान्त आकृतिवाले, पद्म हैं स्थान जिसकों इस प्रकार जैसा चाहिये, वैसा अर्थ करने लगा। तब पंडितजीने कहा :'नहीं महाराज, इसका सच्चा अर्थ करिये ।' राजाने कहा :पंडितजी महाराज, इसका दूसरा अर्थ होताही नहीं है । ' पंडितजी बोले:- ' महाराजाधिराज, इसका 'घी खीचडी ' तो अर्थ नहीं होता है ? ' राजाने कहा :-' वाह ! पंडितजी महाराज ! ऐसा अर्थ कभी होसकता है ? |
पंडितजीने कहा :-' बस, महाराज ! आपने कितने पंडितों का अपमान किया ? | कैसा अनर्थ किया ? |
ऐसे बचन सुनते ही राजाने, उस झूठे अर्थ दिखलाने वाले पुरोहितको कैद करनेकी आज्ञा फरमाई। उसकी सारी मिलकत तथा आमदनी वगैरह छीन ली । सत्य अर्थका प्रकाश होनेसे की हुई अज्ञानताको धिक्कार देने लगा । "
'घी खीचडी' के दृष्टान्तसे आप लोग समझ गये होंगे कि संस्कृत व्याकरणादि नहीं पढनेसे कैसी अवस्था होती है ? और व्याकरणादिके पढनेके अनन्तर कैंसी पोल निकल जाती है ? | इस लिये जहाँ तक हमारे तेरापंथी भाई व्याकरणादि नहीं पढेंगे वहाँ तक परमात्माके सच्चे मार्गसे विमुखही रहेंगे ।
महानुभाव तेरापंथी भाइयो । अब भी कुछ समझ जाओ और विद्याध्ययन करके स्वयं ज्ञान प्राप्त करो । लकीर के फकीर
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