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श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा । १५ *
* * * * + ++ + + वह अर्थ मैं जानता हूँ। यदि आप यह स्वीकार करें कि-राजा आपको जो दे, उसमें से आधा मुझको देवें, तो मैं उसका अर्थ आपको कह दूँ।' पंडितजीने इस बातको स्वीकार किया, तब लडकेने कहा कि-' राजाको कह देना कि इसका अर्थ 'घी खीचडी' होता है।'
पंडितजी विचार करने लगे कि-बड़ा भारी अनर्थ किया है। अस्तु ! पंडितजी अपने सब छात्रों (विद्यार्थियों) के साथ राजसभामें गये। राजाने शीघ्रही उस श्लोकको पंडितजीके सामने धर दिया। उसको देख करके पंडितजी कुछ हसे, और कहने लगेः-'महाराजाधिराज! ऐमी क्या बात निकाली। कुछ तत्त्वकी वात निकालिये । ऐसे श्लोकके अर्थ तो हमारे विद्यार्थी लोग भी कर देंगे । ' ऐसा कह करके एक विद्यार्थीको खडाकर दिया । और कहा:-' जा इस श्लोकका अर्थ राजाजीके कानमें जा करके कह दे।' विद्यार्थीने धीरेसे कानमें कहा:भो राजन् ! 'घी खीचडी' । 'घी खीचडी' ये चार अक्षर सुनतेही राजा चोंक उठा। इतनाही नहीं, सिंहासनसे उतर करके पंडितजीको साष्टांग नमस्कार किया। और लाखों रुपये इनाममें दिये । पंडितजीका जयजयकार हुआ। पंडितजीने धीरेसे कहा"हे राजन् ! यह इनाम वगैरह तो ठीक है, परन्तु मैं आपसे एक और बातकी याचना करता हूँ। वह यह है कि-आप मेरे पास एक वर्ष पर्यन्त संस्कृतका अभ्यास करिये । मैं आपका अधिक समय नहीं लूंगा । सिर्फ घंटा डेढ घंटा मूल २ बात समझाऊँगा।"
राजाने इस बातको सीकार किया। और हमेशां थोडी थोडी संस्कृत पढने लगा। राजा महाराजाओंकी बुद्धि स्वाभाविक
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