________________
१४ श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा । * **
* * * * स्त्रीके आगे भट्टजीका कहाँ तक चल सकता था? स्त्रीके आग्रहसे पुरोहितजी कहने लगेः-' देख, मैं अर्थ तुझे कहता हूं,परन्तु किसीसे कहना नहीं। मुझको उस श्लोकका अर्थ नहीं आता है, परन्तु मैंने राजाको बहकानके लिये 'धी खीचडी' ऐसा अर्थ कहा है । क्योंकि-वैसा अर्थ कोई पंडित करे नहीं, और राजाकी प्रसन्नवा होवे नहीं । बस, अपना कामभी जमा रहे ।'
प्रातःकाल होते ही वह लडका आया और स्त्रीके सामने वह बात छेडी । लडकेने कहाः- आप सब बातमें प्रवीण हैं, परन्तु आश्चर्य है कि उस श्लोकका अर्थ आपको नहीं आता।' स्त्रीने झटसे कह दियाः-'यह क्या बोलता है, मुझे अर्थ आता है। लडकेने कहा- मैं मानता नहीं हूं, तिसपरभी आता हो तो कह दीजिये।
स्त्रीकी जाति कहाँ तक अपने हृदयमें बात रख सकती है? स्त्रीने कहा:-' देख ! किसीसे कहना नहीं। उसका अर्थ तो,जो पंडित लोग करते है, वही है, परन्तु राजाको बहकानेके लिये 'घी खीचडी ' ऐसा अर्थ ठसा दिया है।'
लडकेको उस श्लोकका तात्पर्य ठीक २ मिल गया । हमेशा समस्त पंडितोंका अपमान देख करके लडकेके मनमें बहुतही ग्लानी उत्पन्न होती थी।
एक दिन बड़ा भारी पंडित राजाके पास आया, उसकी भी वही दशा होगी, ऐसा जान करके वह लडका उस पंडितके पास गया । और कहने लगा:-'पंडितजी महाराज ! राजा महामूर्ख है,आपके सामने एक श्लोक रक्खेगा। उसका अर्थ राजाने जो सोच रक्खा है, वह आप नहीं करेंगे, तो आपका अपमान करके निकाल देगा । राजा उस श्लोकका जो अर्थ समझ बैठा है,
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com