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श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा ।
K+++KAKKAR+44 ३ असंयति जीवका जीना नहीं चाहना ।
४ मरते हुए जीवको जबरदस्तिसे यानी शरीरके व्यापारसे बचावे तो पाप लगे।
५ जीवको मारे उसको एक पाप लगे और बचावे उसको अठारह पाप लगे।
६ साधुको कोइ दुष्ट फांसी दे गया हो, और कोइ दयावंत उस फांसीसे साधुको बचावे,तो उसको एकान्त पाप लगे।
७ दुःखी जीवको देखकरके विचार करना कि-'अहो ! यह अपने कर्मसे दुःखी हो रहा है। उसके कर्म तूटे तो अच्छा' बस, ऐसी चिंतवना करे, उसका नाम अनुकंपा है। भोजन-वस्त्र वगैरह दे करके उस जीवको सुख उपजाना नहीं चाहिये ।
प्रिय पाठक ! हमारे तेरापंथी भाइऑकी दया के, नहीं नहीं निदेयताके नमूने आपने देखलिये । अब उनके दान विषयक कुछ नियम देखिये ।
दानके विषयमें. __ १ साधुको छोडकरके किसी [ गरीब रंक दुर्बल-दुःखी वगैरह] को दान देनेमें एकान्त पाप लगता है।
२ महावीर भगवंतने असंयती-अवतिओंको वरसी दान दिया जिससे उनको बारह वर्ष [फोड। दुःख पड़ा।
३ साधुके सिवाय पुण्यका क्षेत्र कहीं भी नहीं है । ४ श्रावकको भी दान देनेमें पाप लगता है।
५ श्रावक झहरके कटोरेके समान तथा कुपात्र हैं। इस लिये उनको दान देनेमें तथा धर्मके उपकरणदेनेमें धर्म नहीं है।
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