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श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा
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हुए पशुओंको अनुकंपासे छुडवाये हैं । तथा ठाणांगसूत्रमें दश प्रकारका दान प्ररूपण किया है उसमें अनुकंपादान साफ २ प्रकट किया है।"
इत्यादि बहुत २ पाठ दिखा करके समझाया, परन्तु उसने अपने अभिनिवेशको बिलकुल त्याग नहीं किया। ठीक है जीवोंकी गति कर्मके अधीन है। और जैसी गति होती है वैसी मति भी होती है। तदनुसार भिखुनजीकी मति भी, उसकी गतिका परिचय कराने लगी । बस, परमात्माके शासनमें अनेकों निह्नव हुए, उन्होंमें इसका भी एक नम्बर बढ गया। परन्तु इसमें एक विशेषता थी। और सब निह्नवतो मूलपरंपरासे निकले, परन्तु यह तो निह्नवोंमेंसे निव हुआ। अस्तु !
यह पहिलेही दिखला दिया है कि-भिखुनजीने मूल तो दो रकमों का फेरफार किया । दया और दान । परन्तु उन दो रकमक फेरफार करनेमें, उसको अनेकों मन्तव्य शास्त्र विरुद्ध प्रकाशित करने पडे । यहाँपर संक्षेपमें, उसके प्रकाशित मन्तव्य दिखलाये जाते हैं।
दयाके विषयमें. १ भूखे-प्यासेको जिमानेमें, कबूतर वगैरह जीवोंको दाने डालनेमें तथा पानीकी पीयाऊ (पो) बनवानेमें एवं दानशाला करवाने एकान्त पाप होता है ।
२ बिल्ली, मूसे [ऊंदर] को पकडती हो, और उसको छुडाया जाय,तो भागान्तराय लगे। इसी तरह और भी कोई हिंसक जीव, कीसी दुर्बल जीवको मारता हो और छुडाया .जायं, तो भोगान्तराय लगता है,।
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