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श्वेताम्बर तेरापंथ मत समीक्षा ।
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इनके सिवाय अनेकों मन्तव्य शास्त्रविरुद्ध प्रकाशित किये हैं । पाठकोने हमारे तेरापंथी भाइयोंकी दयाकी पराकाष्टा ऊपरसे देखली होगी । क्या उनलोगोंको कोई भी मनुष्य जैन कहनेका दावा कर सकता है ? कभी नहीं । परमात्मा महावीर देवने साधुओंको तथा गृहस्थोंको ऐसी निर्दयता रखना फरमायाही नहीं। परन्तु ठीक है, जो लोग संस्कृत-व्याकरणादिको तो पढते नहीं, और टबाटुब्बीसे अपना कार्य निकालना चाहते हैं, वे ऐसे २ झूठे अर्थ करके सत्यमार्गसे परिभ्रष्ट हो जायँ इसमें आश्चर्य ही क्या है । याद रखना चाहिये कि-सिवाय व्याकरणादि पढ़नेके मूत्रोंके वास्तविक अर्थ नहीं प्राप्त हो सकते। और जो लोग नहीं पढे हुवे होते हैं, उनको जैसा भूत लगाया जाय, वैसा लग सकता है । जैसे 'घी खीचडी' का दृष्टान्त ।
घी खीचडीका दृष्टान्त.
"एक विद्यानुरागी राजाकं पास विद्वान् पुरोहित रहता था। उसकी प्रशंसा देश-विदेशमें हुआ करती थी। हजारों विद्वान् उस राजाके पास आकरके, अपनी विद्याका माहात्म्य दिखाकर लाखों रूपये इनाममें ले जाते थे । कालकी विचित्र महिमा है । वह अपना कार्य बराबर बजाया करता है। अपनी अपनी आयुष्यको पूरा करके राजा तथा पुरोहित दोनों परलोकमें जा बसे । राजाकी गद्दी पर राजपुत्र बैठा और पुरोहितजीका कार्य पुरोहितजीका लडका करने लगा । परन्तु ये दोनों संस्कृत ज्ञानसे बिलकुल वंचित ही थे। एक दिन पुरोहितकी स्त्रीने अपने पतिसे कहा:-'स्वामिनाथ ! Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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