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प्रा. हीर विजय सूरि की तरह या, जिनचन्द्र सूरि (खरतरगच्छ ) ने भी फरमान जारी कराये सम्राट अकबर से, जिसने उनका उपदेश लाहोर में सुना था। उसी प्रकार बादशाह अकबर ने आ. विजयसेन सूरि को लाहोर में बुलवाकर धर्मोपदेश सुने और काली-सरस्वती का उनको विरुद भी दिया। उनका स्वर्गवास वी. सं 214। ( वि. सं. 1671 - ई. स. 1614 ) में हया था। उन्होंने 4 लाख जिन विबों की प्रतिष्ठा की और प्रसिद्ध जैन तीर्थ तारंगा शंखेश्वर, सिद्धाचल, पंचासर, राणकपुर, कुभारियाजी, बीजापुर श्रादि तीर्थों का जीर्णोद्धार अपने समय में करवाया था।
सम्राट जहांगीर ने मांडवाढ में प्रा. विजयदेव सूरि को बुलवा कर उनके उपदेश से प्रसन्न होकर, "जहाँगिरि महा तपा" के विरुद से उन्हें अलंकृत किया। उसी प्रकार मेवाड़ के राणा जगतसिंह प्रथम वी.स. 2098--- (वि स 1628-ई स. 1571 से वी. स. 21 22-वि. स. 1652-ई. स. 1595) ने उदयपुर में धर्मोपदेश उनसे सुनकर वरकणा पार्श्वनाथ के मेले के दिन पौष विद 0 के अवसर पर यात्री-कर माफ किया, राज्याभिषेक दिवस, जन्म म.स और भाद्रपद में जीव हिंसा बन्द की, प्रसिद्ध पीछोला और उदयसागर झीलों में मछलियों का पकड़ना रोका और मचिद दुर्ग पर राणा कुभा द्वारा निर्माण कराये हुए चैत्याल्य का पुनरुद्धार किया ।।
ची स. 2202 (वि. स. 1732-ई. स. 1675) में मेवाड़ के राणा राजसिंह के मन्त्री दयाल शाह ने राज नगर में दयाल शाह का किला तीर्थ का निर्माण कराया और उसमें चतुर्मुख भगवान् श्रादीश्वरजी की मूर्तियों की प्रतिष्ठा कराई।
आचार्य विजयसेन सूरि के प्रशिष्य श्री केसर कुशल ने औरंगजेब बादशाह के पुत्र बहादुरशाह और दक्षिरण के सूबा नवाब महम्मद युमुफखान को प्रतिबोध कर, दक्षिण में प्रसिद्ध कुल्पाक तीर्थ का जीर्णोद्धार करवाया । विजयदेव सूरि प्राचार्य के प्रशिष्य प्रा. विजयरत्न सूरि ने बी. स. 2234 (वि स. 1764-ई. स. 1707 ) में नागौर के राणा प्रमरसिंह को और । 'श्री तपागच्छ श्रमरण वेश वृक्ष' (पुस्तकाकार बीजी आवृत्ति गुजराती)
जयन्तीलाल छोटालाल अहमदाबाद पृ. 60 से 62। ।
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