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साध्वी व्याख्यान निर्णय:
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मोना स्वार्थी हृदय नी अजाण बिचारी सरल साध्विश्र रखेने गुरुनो अविनय थई जाय, गुरु नाराज थइजाय श्रेम बीती मने के कमने एओ श्री ना कार्यों करे छे । एवा कार्यों सावि ना पासे थी करावया पशुं साधुओ ने घटित छे ? आगलना साधु साध्विश्र पासे धी सुं प कार्यो करावता हता ?
आगल बंधी ए तारक गणाता गुरुनो, साध्विश्रो प्रत्ये आशा छोड़े छे के - साध्विश्रो श्री सूत्र न पंचाय, व्याख्यान न अपाय । श्रावी रीत नी अटकायत श्री साध्विजीश्रो संस्कृत मागधी अभ्यास करतां अटकी जाय छे । कारण ज्यारे सूत्रो न वांचवा होय ने व्याख्यान न आपवुं होय तो एवं उच्च ज्ञान मेलवी शुं करे ? आम निरुत्साह बनी अभ्यास मां ज्ञान मां आगल वधी शकती नथी । वल्के संयम नुं रहस्य समझवुं दूर रही जाय छे। में घणी साध्वीजीओ ना मुख श्री सांभल्युं छे के - अमोने व्याख्यान अने सूत्रो बांचवानी गुरु तरफ
ज्ञा नथी जेथी व्याख्यान सांभलवा गुरुनी साथै ज चौमासा करीए छीए । ज्यारे पूछवा मां आवे के दर रोज व्याख्यान मां जता त्यारे दुखी हृदये जवाब आपी कहे के काम न होय तो जहए | आधी सांभलनार ने आश्चर्य थया बिना नहीं रहे। शुं मुनीराजो पोताना कार्यों कराववा साध्विन ने साथे चोमासुं कराता हशे ? श्रावा कारणों ने लई क्रमे परिचय वधतो जाय छे अने छेवटे अति परिचय ना योगे जैन शासन ने लजवनारी गंदी बातो बहार आत्रेछे ।
हजु पण पूज्य मुनि महाराजो समझे अने साध्विओ उपर थी पोताना कार्यो नो बोजो उतारे तेमज व्याख्यान भने सूत्र बांधवानी छूट आपे, अभ्यास वधारवा खाश भलामण करे तो आज नुं वातावरण ( अज्ञान, कुसंप, कलह कुथल विगेरे ) फरीजतां वार लागशे नहीं। पछी समाज जोई शकशे के साध्वी संस्था केटलं कार्य करी शके छे अने समाज ने केवी उपयोगी थाय छे आगलनी महासती शिरोमणि साध्वीजीश्रो ज्ञान में वधेली होवा थी चरित्र धी भ्रष्ट यता मोटा ऋषिश्रो ने पण सद्बोध थी मार्ग ऊपर लावी शक्या छे एवा अनेक दाखलाओ मौजूद छे । ते आजे कोई ना थी अजारायुं नथी ।
ते शक्ति आज पण नाश पामी नथी। जो तेने पुरती सगवड़ो करी देवा मां आवे तो निस्तेज बनेली शक्ति सतेज बने मां कांई आश्चर्य नथी ।
आज श्रावको पण साधुत्रो ना भरमान्या थी जेम के पुरुष पद प्रधान छे में स्त्री नीची वे तेथी साध्वियो प्रत्ये बहूज श्रोछी लागणी धरावे छे । तेमना व्याख्यान श्रवण थी पण श्रावको अभड़ाई जाय छे। ख पूछो तो तो साध्वी जी प्रत्ये भाग्येज कोई पूज्य भाव धरावता हशे । साधुओ ने भणाववा माठे सौ सौ रुपया ना पगारदार पंडितो त्यारे साध्विभो माटे पांचनो ए नहीं । प्राशुं ओछी संकुचित दृष्टि कद्देवाय ।
हजू प श्रावको चेते अने साध्वियो ने बहुमान नी दृष्टि थी जुए । साध्वीजीश्रो मा चौमाला अलग करावे अने तेमने अभ्यास माटे पुरती करे। जो साध्वी संस्था सुधरशे तो जरूर स्त्री
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