________________
३०२
सघम मण्डनम् ।
(उत्तर) हे कालोदायिन् ! क्रोधित हुए अनगारसे फेकी हुई तेजोलेश्या, दूर तक फेंकी हुई दूर और निकट में फेंकी हुई निकटमें जाकर पड़ती है। जहां जहां वह तेजोलेश्या पड़ती है वहां हां उसके अचित्त पुद्गल प्रकाश करते हैं ।
यहां भगवती के मूल पाठमें तेजोलेश्याके पुद्गलोंको अचित्त कहा है इस लिये अनि सचित्त पुलोंका दृष्टान्त देकर शीतल लेश्याके द्वारा इन अचित्त पुगलों को शान्त करनेमें आरम्भ दोष बतलाना शास्त्र नहीं जानने का फल समझना चाहिये ।
( बोल ७ वां समाप्त )
( प्रेरक )
भ्रम विध्वंसन कार भ्रम विध्वंसन पृष्ठ १७८ के ऊपर भगवती शतक २० उ०९ की टीका लिख कर उसकी समालोचना करते हुए लिखते हैं:
" अथ टीकामें इम को एलब्धिफोडते प्रमादनो सेववो ते आलोयां विना चारत्रनी आराधना न थी ते मांटे विराधक कह्यो । इहां पिण लब्धिफोड्यां रो प्रायश्चित्त कह्यो । इहां पिण लब्धि फोड्यां धर्म न कह्यो । ठाम ठाम लब्धि फोडनी सूत्रमें वर्जी छै तो भगवन्तट्ठ गुण ठाणे थका तेजू लब्धि फोडीने गोशालाने बचायो तिणमें धर्म किम कहिये । ( ० पृ० १८७ )
इसका क्या उत्तर ?
( प्ररूपक )
भगवती शतक २० उद्देशा ९ की टीकामें जंघाचरण और विद्याचरण लब्धिके विषय में विचार किया गया है दूसरी लब्धिके विषय में नहीं। वहां जंधाचरण और विद्याचरण लब्धिका प्रयोग करना प्रमादका सेवन कहा है शीतल लेश्याका प्रयोग करना प्रमाद का सेवन नहीं कहा है । तथापि यदि कोई दुराग्रह वश सभी लब्धियोंका प्रयोग करना प्रमादका ही सेवन करना बतलावे तो उसे कहना चाहिये कि - शास्त्रमें ज्ञान लब्धि, दर्शन लब्धि, चरित्र लब्धि, क्षीर, मधु, सर्विस्त्रत्र लब्धि भी कहो गई हैं इनका प्रयोग. करना भी तुम प्रमोदका सेवन क्यों नहीं मानते ? यदि कहो कि इनका प्रयोग करना प्रमादका सेवन करना नहीं है किन्तु गुग है तो उसी तरह शीतल लेश्या का प्रयोग करना भी गुण ही है प्रमादका सेवन करना नहीं है। भगवती सूत्रकी उक्त टीकामें जंघा चरण और विद्याचरण लब्धिका प्रयोग करना ही प्रमादका सेवन करना कहा है शीतल लेश्या लब्धि, ज्ञान, दर्शन, चारित्र लब्धिका प्रयोग करना प्रसादका सेवन नहीं कहा है अतः
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com