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________________ ध्यधिकारः। ने सुनक्षत्र और सर्वानुभूतिकी रक्षा नहीं करने का सिद्धांतभूत कारण बतलाते हुए "अवश्यंभाविभावत्वात्" यह लिखा है। यदि जीवरक्षा करनेमें पाप होता तो टीकाकार ऐसा क्यों लिखते वह साफ साफ लिख देते कि जीवरक्षा करनेमें पाप था इसलिये भगवान ने सुनक्षत्र और सर्वानुभूतिकी रक्षा नहीं की। परन्तु टीकाकारने यह नहीं लिख कर सुनक्षत्र और सर्वानुभूतिका मरना अवश्य होनहार बतलाया है, इससे यही बात सिद्ध होती है कि गोशालककी क्रोधाग्निसे सुनक्षत्र और सर्वानुभूति का मरण अवश्य होनहार जान कर भगवान ने उन की रक्षा नहीं की थी। अतः उक्त भगवती की टीका का नाम लेकर मरते जीव की रक्षा करने में पाप वताना अज्ञानमूलक है। (बोल छठा समाप्त) (प्रेरक) कोई कोई कहते हैं कि जैसे पानीके द्वारा आग बुझानेसे हिंसादि रूप आरम्भ होता है उसी तरह शीतल लेश्याके द्वारा तेजो लेश्याको बुझानेमें भी आरम्भ दोष होता है इस लिये शीतल लेश्याके द्वारा भगवानने जो तेजो लेश्याको शान्त करके गोशालककी प्राण रक्षा की थी इसमें उनको आरम्भ दोष लगा था। इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक) शोतल लेश्याके द्वारा तेजो लेश्याके शान्त करनेमें भारम्भ दोष बतलाना शास्त्र नहीं जाननेका फल है । भगवती शतक ७ उद्देशा १० के मूल पाठमें उष्ण तेजो लेश्याके पुगलोंको अचित्त कहा है। वह पाठ यह है __ "कयरेणं भन्ते ! अवित्तावि पोग्गला उ भासन्ति जाव पभासंति ? कालो दाई ! कुद्धस्स अणगारस्स तेयलेस्सा निसहासमाणी दूरंगता दूर निवाइ देसंगता देसं निवत्तइ जहि जहि चणंसा निवत्तइ सहि सहि चणं ते अचित्तावि पोग्गला उ भासंति जाव पभासंति। (भगवती शतक ७ ७० १०) अर्थ :(प्रश्न ) हे भगवन् ! कौमसे अचित्त पुद्गल प्रकाश करते हैं ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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