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________________ दानाधिकारः। १९३ रखने, पारणेके दिन सुझता आहार लेने आदिको पापमें बताना मिथ्यावादियों का कार्य है। (बोल ३६ वां समाप्त) (प्रेरक) __ भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ १०९ के ऊपर लिखते हैं "तिवारे कोई एक कहे जो पडिमाधारीने दियां धर्म न हुवे तो दशाश्रुतस्कन्ध सूत्रमें इम क्यू कह्यो जे पडिमाधारी न्याती लारे घरे भिक्षाने अर्थ जाय तिहां पहिला उतरी दाल अने पछे उतरथा चावल तो कल्पे पडिमाधारीने दाल लेणी न कल्पे चावल लेवा” इत्यादि लिख कर आगे लिखते हैं-"इम कहे तेहनो उत्तर ए कल्पनाम आज्ञानो नहीं छै ए कल्पनाम तो आचारनो छै पडिमाधारीने जेहवो आचार कल्पतो हुन्तो ते वतायो पिण आज्ञा नहीं दी धी इम जो आज्ञा हुवे तो अम्वडने अधिकारे पिण एहवो कह्यो” इत्यादि लिख कर अम्वड संन्यासीके विषयमें आया हुआ पाठ लिख कर उसके दृष्टान्तसे ११ वी प्रतिमाधारीके आचारको आज्ञा बाहर सिद्ध करनेकी चेष्टा की है। इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक) अम्वड संन्यासी तथा दूसरे परिव्राजकके अधिकारमें जो "कल्प" शब्द आया है वह परिव्राजकोंके शास्त्रका कल्प है वीतरागकी आज्ञाका कल्प नहीं है तथा वरुण वाग न त्तू याके अधिकारमें जो यह कहा है कि "जो मुझे पहिले बाण मारेगा उसीको मैं भी वाण मारूंगा" यह कल्प भी तीर्थंकर की आज्ञाका नहीं किन्तु वरुण नागनत्तू या की इच्छाका कल्प है परन्तु प्रतिमाधारीके अधिकारमें जो कल्प शब्द आया है वह तीर्थङ्करका विधान किया हुआ कल्प है प्रतिमाधारियोंकी इच्छाका कल्प नहीं है क्योंकि दशाश्रुत स्कन्ध सूत्रमें प्रतिमाधारीके कल्पका तीर्थकर और गगधरोंसे विधान किया . जाना लिखा है। वह पाठ यह है: "सुर्यमे आउसं ! तेणं भगवया एव मक्खाई इह खलु थेरेहिं भगवन्तेहिं एगारस्स उवासग पडिमाओ पन्नत्ताओ" . अर्थात् हे आयुष्मन् ! स्थविर भगवन्तोंने जिस प्रकार. श्रावकोंकी ११ प्रतिमायें कही हैं उसी तरह तीर्थकरने भी कही हैं यह मैंने सुना है।। इस पाठमें ११ प्रकारकी प्रतिमाओंका आचार तीर्थङ्कर और गणधरोंसे कहा हुआ कहा है इसलिये ११ वी प्रतिमाधारीका कल्प तीर्थकर वोधित है अपनी इच्छाका कल्प Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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