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सद्धममण्डनम् ।
सेणूणं भन्ते ! सब्यपाणेहिं सब्यभूएहिं सब्बजीवेहि सव्वसत्तेहि पचक्खायमितिवद्माणस्स सुपचक्खायं भवइ दुप्पचक्खायं. भवति ? गोयमा ! सव्वपाणेहिं जाव सव्व सत्तेहिं पञ्चक्खायमिति वदमाणस्स सिय सुप्पचक्खायं भवति सिय दुप्पचक्यायं भवति । सेकेण?णं भन्ते ! एवं वुच्चइ सव्व पाणेहिं जाव सिय दुप्पचक्खायं भवति ? गोयमा ! जस्सणं सव्व पाणेहिं जाव सव्व सत्तेहिं पच्च-. क्खाय मिति वद्माणस्स णो एवं अभिसमण्णागयं भवइ इमे जीवा, . इमे अजीवा इमे तसा इमे थावरा तस्सणं सव्व पाणेहिं जाव सव्व सत्तेहिं पञ्चक्खाय मिति वदमाणस्स नो सुपच्चक्खागं भवति दुप्पचक्खायं भवति । एवं खलुसे दुप्पचक्खाई सव्वपाणेहि जाव सव्व सत्तेहि पच्चक्खायमिति बदमाणे नो सच्च भासं भासइ मोसं भासं भासह एवं खलुसे मुसावाई सव्व पाणेहिं जाव सव्व सत्तेहिं तिविहं तिविहेणं असंजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे सकिरिए असंवुड़े एगंत दण्डे एगंत घाले याविभवई" ..
(भगवती शतक ७ उ०२) इसका अर्थ यह है
(प्रश्न ) हे भगवन ! जो पुरुष यह कहता है कि मैंने सब प्राणियोंसे लेकर यावत् सब सत्योंके हननका त्याग कर दिया है उसका वह प्रत्याख्यान (मारनेका त्याग) सुप्रत्याख्यान होता है या दुष्प्रत्याख्यान होता है ?
(उत्तर) हे गोतम ! किसी किसीका प्रत्याख्यान सुप्रत्याख्यान होता है और किसी किसीका दुष्प्रत्याख्यान भी होता है।
(प्रश्न ) इसका क्या कारण है ? . (उत्तर) हे गोतम ! जो यह कहता है कि हमने सब प्राणियोंसे लेकर यावत् सब स्वत्वों का मारना छोड़ दिया है उसको यदि यह ज्ञान नहीं है कि ये जीव हैं, ये अजीव हैं, ये स हैं और ये स्थावर हैं, उसका प्रत्याख्यान दुष्प्रत्याख्यान होता है। इस प्रकार वह दुष्प्रत्याख्यानी पुरुष "मुझे सब जीवोंके हननका त्याग है" यह कहता हुआ सत्य नहीं बोलता वह झूठ बोलता है वह तीन करण और तीन योगसे संयमधारी, विरतिपुक्त, पापोंका हनन और प्रत्याख्यान किया हुआ नहीं है। वह कायिकी आदि क्रियाओंसे युक्त संवर रहित प्राणियोंको एकान्त दण्ड देनेवाला और एकान्त बाल है ।
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