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राष्ट्रकूटों का इतिहास कृष्णराज तृतीय अपने पिता को भी राज्य-कार्य में महायता दिया करता था । इसने पश्चिमी गङ्ग-वंशी राचमल्ल प्रथम को गद्दी से हटाकर उसकी जगह, अपने बहनोई, भूतार्य ( भूतुग द्वितीय ) को गद्दी पर बिठाया था, और चेदि के कलचुरि ( हैहय-वंशी ) गजा सहस्रार्जुन को जीता था । यह सहस्रार्जुन इसकी माता, और स्त्री का रिश्तेदार था । इस ( कृष्ण ) की वीरता से गुजरातवाले भी डरते थे।
इसके २६ वें राज्य-वर्ष का लेख मिलने से सिद्ध होता है कि, इसने कमसे कम २६ वर्ष अवश्य ही राज्य किया था । ___सोमदेवरचित 'यशस्तिलकचम्पू' इसी के समय , श. सं ८८१ (वि. सं. १०१६ =ई. स. १५६ ) में, समाप्त हुआ था। उसमें इसे (कृष्ण तृतीय को ) चेर, चोल, पाण्डय , और सिंहल का जीतने वाला लिखा है। ('नीतिवाक्यामृत' नामक राजनैतिक ग्रंथ भी इसी सोमदेव ने बनाया था।)
कृष्णराज तृतीय के नाम के साथ लगी “ परममाहेश्वर' उपाधि से इसका शिवभक्त होना प्रकट होता है। इसका राज्याभिषेक वि. सं. ११६ (ई.स. १३६ ) के करीब हुआ होगा । यह राजा बड़ा प्रतापी था, और इसका राज्य गङ्गा की सीमा को पार कर गया था।
कनाडी भाषा का प्रसिद्ध कवि पोन भी इसी के समय हुआ था। यह कवि जैन-मतानुयायी था , और इसने 'शान्तिपुराण' की रचना की थी। कृष्णराज तृतीय ने, इसकी विद्वत्ता से प्रसन्न होकर, इसे "उभयभाषाचक्रवर्ती" की उपाधि दी थी।
(१) तामिल भाषा के एक पिछले लेख से राचमल्ल का भी भूतुग के हाथ से माराजाना
प्रकट होता है । (२) सोमदेव ने जिस समय उक पुस्तक बनायी थी, उस समय वह कृष्णराज तृतीय के
सामन्त , चालुक्य परिकेसरी के बड़े पुत्र , वहिग की राजधानी में था। (३) जेनसाहित्य संशोधक, खण्ड २ मा ३, पृ. ३६.
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